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भाषण : सूरतमें

बीचमें होऊँ और सरकार मुझे गिरफ्तार करना चाहती हो तो वे सरकारसे कहेंगे कि बने तो लड़कर ले जाओ। लेकिन यहाँ ऐसा कुछ नहीं है। यहाँ शान्ति स्थापित न हो तो मुझे हिमालय जाना पड़े। मेरे लिए हिंसा नहीं होने देनी चाहिए। लेकिन ऐसी शक्ति हिन्दुओंमें नहीं है, मुसलमानोंमें भी नहीं है। मैंने इलाहाबादमें मुसलमान भाइयोंसे कहा था कि मैंने आज आपके सामने जो विचार रखे हैं वे नये नहीं हैं। सारे शास्त्रोंमें इनका उल्लेख पाया जाता है लेकिन आजतक हम उन्हें भूले हुए थे। अगर आपको ऐसा लगता हो कि आप आज ही तलवारसे इस्लामकी रक्षा कर सकते हैं तो आप तलवार खींच सकते हैं। आप चाहें तो वाइसरायकी चुपचाप हत्या कर सकते हैं अथवा करवा सकते हैं, लेकिन इससे इस्लामकी रक्षा नहीं होनेवाली; इससे तो मार्शल लॉ लागू हो जायेगा। इसकी भी कोई चिन्ता नहीं लेकिन इससे हिन्दुस्तान बिलकुल दब जायेगा। मैं इस समय हिन्दुस्तानको जिस मार्गपर चलनेके लिए कह रहा हूँ वह बलवानोंका नहीं अपितु दुर्बल व्यक्तियोंका ही मार्ग है। यदि मुसलमानोंमें वैसा बल होता तो वे मुझसे कहते कि हमें तलवार चलानेसे रोकनेवाला तू कौन होता है? हमें तो कुरान शरीफकी ओरसे ऐसा ही आदेश मिला हुआ है। हिन्दुओंमें भी मेरी बातको न माननेवाले व्यक्ति पड़े हुए हैं। तथापि यह बात ध्यान देने लायक है कि हिन्दुस्तानने मेरी बातको स्वीकार कर लिया है। जलियाँवाला बागमें जो लोग मारे गये वे शहीद होनेके इच्छुक अथवा वीर न थे। ऐसा होता तो जब डायरने उद्धततापूर्ण व्यवहार किया तब या तो वे तलवार खींच लेते अथवा अन्य किसी उपायसे उसका सामना करते; या छाती तानकर खड़े-खड़े प्राण देते; भागते नहीं। इमाम हजरत जो कर गुजरे वैसा काम करनेवाले हिन्दुस्तानमें इस समय न तो सिख हैं, न गोरखे ही। बनिये तो हो ही नहीं सकते। और जहाँतक राजपूतोंका सवाल है वे भी अब बनिये हो गये हैं। फलतः मेरे गिरफ्तार किये जानेपर हिन्दुस्तानमें अशान्ति हो तो मैं कहूँगा कि आप हार गये क्योंकि [शान्ति बनाये रखनेकी] आपमें ताकत नहीं है। अगर आप लोग आजसे स्कूल जाना नहीं छोड़ सकते तो जिस दिन मैं पकड़ा जाऊँ उस दिन से छोड़ दीजियेगा। वकील वकालत करना, सिपाही सिपाहीगिरी और सेना अपने हथियार छोड़ दे; इस सबके अतिरिक्त मैं एक किसान हूँ, किसान उस दिनसे कहें कि वे कर नहीं देंगे। जिन दिन ऐसा होगा उसी दिन हमारा उद्धार होगा।

कदाचित् हम तीनोंको एक साथ ही घसीटा जायेगा। अबतक मैं भगवान् से यह प्रार्थना करता था कि इन दोनोंको एक साथ ही पकड़ा जाये; अब तीनोंके लिए प्रार्थना करता हूँ। इसी कारण मैंने शौकत अलीको अकेले दिल्ली जानेसे मना किया क्योंकि मेरी अभिलाषा तो यही है कि अगर हम पकड़े जायें तो एक साथ ही पकड़े जायें। सरकारके सिरपर अगर पागलपन सवार होगा तो वह हम तीनोंको एक साथ अथवा हम तीनोंमें से जो उसे अधिक गुनहगार लगेगा, उसे गिरफ्तार करेगी।

सरकार हमें तलवारसे दबा नहीं सकती। मुझे सरकारसे यह कहनेका अधिकार होना चाहिए कि अगर वह गैरकानूनी ढंगसे शासन करेगी तो हम उसका