है, खिलाफतके प्रश्नपर हमारी विजय तभी हो सकती है जब आप एक हो जायेंगे। आप अंग्रेजोंके साथ सहयोग करना छोड़ दें। मेरे कहनेका अभिप्राय यह नहीं है कि आप किसी अंग्रेजकी हत्या करें; क्योंकि तब तो एक-एक अंग्रेजके लिए एक-एक हजार भारतीयोंकी जानें जायेंगी। जनरल डायर और सर माइकेल ओ'डायरने अमृतसरमें यही सिद्ध कर दिखाया है। मैं एक अंग्रेजके जीवनके बदले १,००० भारतीयोंकी बलि देनेके लिए तैयार हूँ, लेकिन इतना भारी मूल्य चुकाना भी उचित नहीं है। सरकारी नौकरियोंमें जितने भी भारतीय हैं तथा सेनामें जितने भी भारतीय सिपाही हैं, वे सब हमारे भाई हैं। प्रतिमाह दस रुपये पानेके लिए ही हमारे भारतीय सिपाही अपने भाइयोंकी हत्या करें! मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि यह काम ठीक नहीं है। मैंने ३५ वर्षोंतक अंग्रेजोंके साथ सहयोग किया है, लेकिन अब मैंने यह बन्द कर दिया है। किसी भी व्यक्तिको विधान परिषदोंके चुनावमें खड़ा नहीं होना चाहिए और न किसीको वोट देने चाहिए, क्योंकि यह सिर्फ धोखेकी टट्टी है। किसीको भी सरकारकी नौकरियाँ नहीं करनी चाहिए और हमें अपने बच्चोंको सरकारी स्कूलोंमें नहीं भेजना चाहिए। अपने झगड़ोंको निबटानेके लिए आप पंचायत बुलायें। जो मौलवी गिरफ्तार कर लिये गये हैं वे छूट जायेंगे।
नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया : होम : पोलिटिकल : दिसम्बर १९२० : सं॰ १८३-८६ और के॰ डब्ल्यू॰ ए॰
१८७. सन्देश : भारतीय महिलाओंको
बम्बई
[९ अक्तूबर, १९२०]
भगिनी समाजने शनिवारको सांयकाल मारवाड़ी विद्यालयके भवनमें श्री मो॰ क॰ गांधीके ५२ वें जन्म-दिवसका उत्सव मनाया। उत्सवमें महिलाएँ बड़ी संख्यामें सम्मिलित हुई थीं। उसकी अध्यक्षता श्रीमती जाईजीबाई पेटिटने की।
प्रारम्भमें कुछ महिलाओंने ईशवन्दना की। उसके बाद श्रीमती पेटिटने गुजरातीमें लिखा हुआ श्री गांधीका सन्देश पढ़ा। सन्देशमें उन्होंने कहा था, मैं नहीं समझता कि मेरे जन्म-दिवससे महिलाओंका क्या सम्बन्ध है और भारतीय स्त्रियाँ मेरे किस गुणके कारण मुझे मानती हैं। इस सम्बन्धमें विचार करनेपर मैं अनुभव करता हूँ कि वे मेरे प्रेमके कारण ही मुझे मानती हैं। वे जानती हैं कि मैं हृदयसे उनके आत्मसम्मानकी रक्षा करना चाहता हूँ और उसकी रक्षाका सबसे आसान तरीका जो मैंने उन्हें बताया है, वह है स्वदेशी। स्वदेशीका प्रचार करनेमें स्त्रियाँ जितनी सहायक हो सकती हैं, उतने पुरुष नहीं। जब भारतकी पुत्रियाँ सूत काता करती थीं और उससे बने कपड़ोंसे अपना और दूसरोंका तन ढका करती थीं उस समय भारत गरीब तो था, लेकिन