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पत्र : मगनलाल गांधीको

इतना नहीं जितना वह आज है। उस समय भारतकी स्त्रियाँ अपने शीलकी रक्षा करती थीं; लेकिन मैं देखता हूँ कि वे आज नहीं करतीं। इसलिए मैं स्त्रियोंमें इसी बातका प्रचार करता हूँ। उन्हें मेरी यही सलाह है कि वे सब एक घंटा रोज सूत कातनेमें खर्च करें। आप सबको सादा जीवन बिताना अपना कर्त्तव्य मानना चाहिए, और अपनी कन्याओंके काते हुए सूतसे बने वस्त्रोंको पवित्र मानकर उन्हींका व्यवहार करना चाहिए। मेरी समझसे भारतको स्वराज्य केवल इसीसे मिल सकता है।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १३-१०-१९२०

 

१८८. पत्र : मगनलाल गांधीको

[९ अक्तूबर, १९२०][१]

यह पत्र शुक्रवारकी साँझको आरम्भ किया और शनिवारको सुबह ३-१५ पर समाप्त किया।

चि॰ मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। लक्ष्मी जबतक हमारे साथ रहे तबतक वह हमारी है। दाभाई[२]ले जायें तो ले जा सकते हैं। मेरे लिए वह पुत्रीकी तरह है। वह सुसंस्कृत नहीं है लेकिन हमें उसे सहन करना है। दुःख इतना ही है कि भार मैंने उठाया था लेकिन ढोना पड़ा तुम्हें। यह तो मेरी आदत ही रही है और तुम्हें उसे सहन करना ही है। इसीमें तुम्हारी तालीम है। यह कठिन है, फिर भी तुमने इसे स्वीकार किया है।

हरिलालके बच्चोंके सम्बन्धमेंमें क्या कर रहा हूँ? हरिलाल जबतक रहने देगा तबतक रखूँगा। वह ले जाना चाहे तो कौन 'न' कह सकता है? क्या उनके हितोंकी हानि नहीं हुई है? क्या इसके लिए हम अपनेको उत्तरदायी ठहरायेंगे? मैं तो सब-कुछ ईश्वरपर छोड़ता हूँ। जवाबदार और हकदार वही है। हम तो निमित्तमात्र हैं। यदि हम अपने अहम्का त्याग कर दें [तो समझो कि] हमने अपना कर्त्तव्य पूरा कर लिया। इस लड़कीको दूदाभाईने मुझे सौंपा। उस समय मेरी कसौटी हुई, उसमें मैं अनुत्तीर्ण कैसे होता? अब हमसे उसके लिए जो बन सके, वही करना हमारा कर्तव्य है। दूदाभाई इसमें बहुत हस्तक्षेप करना चाहें तो उन्हें करने दें अर्थात् या तो वे हमारे पास लड़कीको रहने दें अथवा ले जायें। यही नियम मैंने हरिलालपर भी लागू किया है। मेरी ऐसी आकांक्षा है कि यह लड़की मीराबाई बने। लेकिन उसके बदले वह वेश्या निकले तो भी क्या किया जा सकता है? हम उसे वैसा

  1. दूदाभाईने अपनी बेटी लक्ष्मीको ५ अक्तूबर, १९२० को गांधीजीको सौंपा था। देखिए "भाषण सूरतमें", ६-१०-१९२० । यह पत्र उसके बादके शुक्रवारको लिखना शुरू किया गया था।
  2. एक आश्रमवासी।