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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बननेमें मदद न करेंगे, इतना हमारे लिए काफी है। इससे भी यदि सब-कुछ समझमें न आ सके तो फिर पूछना। [मेरे लिए] जैसी रुखी अथवा मनु वैसी ही लक्ष्मी है; इसमें सब-कुछ आ गया है।

इमाम साहब से कहना कि मैं खिलाफतके सम्बन्धमें निरन्तर विचार करता रहता हूँ। मैंने हस्तक्षेप करनेकी थोड़ी कोशिश की थी। और अधिक मैं नहीं कह सकता। इसके अलावा दोनों भाई[१] [भी] दूर हैं। उनसे कहना कि चिन्ता न करें। बहुत-सी घटनाएँ होती हैं जिन्हें हम समझ नहीं सकते। उन्हें कोई रोक सके, सो नहीं। सबकी रक्षा ईश्वर किया करता है। इसलिए अन्तमें सब-कुछ ठीक ही होगा। क्या अमीना कुछ पढ़ती है?

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ५७६८) से।
सौजन्य : राधाबेन चौधरी

 

१८९. दैनन्दिनी

जो व्यापारी हर रोज हिसाब किये बिना सो जाता है उसका अवश्य किसी-न-किसी दिन दिवाला निकल जाता है; जो व्यक्ति ईश-भजन, संध्या-स्नानादि किये बिना अपना दिन बिताता है वह प्रभुके प्रति अपराधी बनता है और उसे आत्मज्ञानकी प्राप्ति कदापि नहीं हो पाती। इसी न्यायसे जो स्वराज्यवादी असहयोगको स्वराज्यप्राप्तिका साधन मानता है उसे हमेशा हिसाब लगाकर अपने मनसे निम्नलिखित प्रश्न करने चाहिए :

१. आज मैंने सम्मानित ओहदों और पदवियोंपर प्रतिष्ठित कितने व्यक्तियोंसे उन्हें छोड़ देनेका अनुरोध किया?

२. मैंने अपने बच्चोंको कालेज अथवा स्कूलोंसे उठा लेनेमें इतनी देर क्यों की है?

३. मैंने अन्य कितने व्यक्तियोंको ऐसा करनेकी प्रेरणा दी है?

४. मैंने अभीतक वकालत क्यों नहीं छोड़ी है? अथवा मैंने अन्य कितने वकीलोंसे वकालत छोड़ देनेकी प्रार्थना की है?

५. मैंने कितने लोगोंको सेनामें भरती न होनेकी सलाह दी है?

६. मैंने किन-किन लोगोंको विधान परिषदोंमें जानेसे रोका है? कितनोंको मत न देनेके लिए समझाया है?

७. मैंने स्वयं विदेशी मालका कितना बहिष्कार किया है? कितनोंसे ऐसा करवाया है?

८. मैंने स्वयं कितना सूत काता है? कितना दूसरोंसे कतवाया है? कितने बुनकरोंको प्रोत्साहन दिया है?

  1. अली-बन्धु।