है, और यदि हम इस अपमानको चुपचाप सहन कर लेंगे तो ये सुधार हमारे लिए व्यर्थ सिद्ध होंगे। इसलिए मेरी नम्र सम्मतिमें, सच्ची प्रगतिकी पहली शर्त यह है कि हमारे रास्तेसे ये कठिनाइयाँ हटा दी जायें। और जबतक हम किसी और अच्छे उपायका नियोजन नहीं कर लेते तबतक हमें बाध्य होकर असहयोगका मार्ग ही अपनाना होगा।
यंग इंडिया, ७-७-१९२०
९. वक्तव्य : असहयोग समितिका
[७ जुलाई, १९२० के पूर्व]
असहयोग समितिने लोगोंकी जानकारी और मार्ग-दर्शनके लिए एक वक्तव्य जारी किया है, जो हम नीचे दे रहे हैं:
असह्योग समिति लोगोंसे क्या अपेक्षा रखती है और असहयोग प्रारम्भ करनेके लिए कौन-से तरीके अपनाये जायें, इस सम्बन्धमें समितिसे बहुत सारे सवाल पूछे गये हैं।
समिति चाहती है, लोग इस बातको समझें कि वैसे तो वह अपेक्षा यही करती है कि उसकी सिफारिशोंपर लोग पूरा-पूरा अमल करें, लेकिन साथ ही उसकी इच्छा कमजोरसे-कमजोर लोगोंको भी साथ लेकर चलनेकी है। समिति चाहती है कि उसके असहयोगके कार्यक्रममें सारा देश सक्रिय सहयोग दे,लेकिन अगर यह सम्भव न हो तो उसके साथ पूरी सहानुभूति तो रखे ही।
इसलिए जो लोग शारीरिक कष्ट नहीं उठा सकते, वे आन्दोलनके लिए चन्दा देकर या और तरहके काम करके सहायता दे सकते हैं।
अगर असहयोग करना आवश्यक हो जाये तो उस हालतमें समितिने तय किया है कि इस आन्दोलनके प्रथम चरणके रूपमें लोग निम्नलिखित काम करें:
(१) सभी सम्मान-सूचक सरकारी उपाधियों और अवैतनिक पदोंको छोड़ दें।
(२) सरकारी ऋण-योजनाओंमें सहयोग न दें।
(३) वकील लोग वकालत छोड़ दें और दीवानी झगड़ोंका निबटारा आपसी पंच-फैसले द्वारा किया जाये।
(४) बच्चोंके माता-पिता सरकारी स्कलोंका बहिष्कार करें।
(५) सुधार-योजनाके अनुसार गठित कौंसिलोंका बहिष्कार करें।
(६) सरकारी भोजों तथा ऐसे ही अन्य समारोहोंमें शामिल न हों।
(७) मेसोपोटामियामें कोई भी असैनिक अथवा सैनिक पद स्वीकार न करें, और जो सेना विशेष रूपसे टर्की साम्राज्यके उन प्रदेशोंमें रखी जानेवाली हो, जिन्हें ब्रिटिश सरकारने वचन तोड़कर अपने प्रशासनमें ले लिया है, उस सेनामें भरती न हों।