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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वदेशीका प्रचार

(८) स्वदेशीके कार्यक्रमको जोर-शोरसे कार्यान्वित करें और लोगोंको राष्ट्रीय तथा धार्मिक जागृतिकी इस घड़ीमें अपने ही देशमें उत्पादित और निर्मित चीजोंके उपयोगसे सन्तुष्ट रहकर देशके प्रति अपना बुनियादी कर्त्तव्य निभानेकी प्रेरणा दें।

स्वदेशी आन्दोलनको आगे बढ़ाना चाहिए और उसके लिए पहली अगस्ततक प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि स्वदेशी तो आचरणका एक ऐसा शाश्वत नियम है जिसके पालनमें खिलाफतके सवालका निबटारा हो जाने के बाद भी कोई व्यवधान नहीं आना चाहिए।

लोग किसी प्रकारसे बँध न जायें, इस खयालसे वे असैनिक अथवा सैनिक नौकरियोंमें न जायें। वे नया पुराना, कोई भी सरकारी ऋण न लें।

शेष बातोंके सम्बन्धमें यह ध्यान रखना चाहिए कि असहयोग अगले अगस्त माहकी पहली तारीखसे पूर्व प्रारम्भ नहीं होनेवाला है।

महामहिम सम्राट्के मन्त्रियोंसे इस सर्वनिन्दित सन्धिकी शर्तोंमें आवश्यक परिवर्तन करानेका अनुरोध करके हम इस बातकी हर सम्भव कोशिश कर रहे हैं, और आगे भी करते रहेंगे, कि हमारे और सरकारके बीच यह गहरी दरार न पड़ने पाये।

जो लोग अपनी जिम्मेदारी और इस उद्देश्यकी गुरुताको समझते हैं, वे स्वतन्त्र रूपसे काम न करके समितिकी सलाहके अनुसार काम करें। पूर्ण रूपसे अनुशासित और संगठित असहयोगपर ही सफलता निर्भर है और अनुशासित तथा संगठित असहयोग तभी सम्भव है जब दिये गये निर्देशोंका ठीकसे पालन किया जाये, शान्तिसे काम लिया जाये और हिंसासे बिलकुल दूर रहा जाये।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ७-७-१९२०

१०. टिप्पणियाँ

विशुद्ध सविनय अवज्ञा[१]

'यंग इंडिया' के सभी पाठकोंको शायद मालूम न हो कि गत वर्ष अप्रैल माहके उपद्रवोंके कारण अहमदाबादपर बहुत भारी जुर्माना ठोका गया था। जुर्मानेकी रकम अहमदाबादके नागरिकोंसे वसूल की गई लेकिन कलक्टरकी मर्जीसे कुछ लोगोंको उससे बरी भी कर दिया गया। जिन लोगोंसे जुर्माने देनेको कहा गया, उनमें आयकर देनेवाले लोग भी थे। उन्हें अपने आयकरका तीसरा हिस्सा जुर्मानमें देना पड़ा। श्री वी॰

  1. इस टिप्पणीपर गांधीजीके हस्ताक्षर नहीं थे परन्तु यह सत्याग्रह नामक उनकी पुस्तक (पृष्ठ १३८-९) में दी गई है।