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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/३९१

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स्कूल


मैं यह मानता हूँ कि आत्म-त्याग और स्वार्थ-त्यागकी तालीमके बिना स्वराज्य असम्भव है; और [आज] मैंने कितना स्वार्थ-त्याग किया है? मैंने इस आन्दोलनको चलानेके लिए अपने ही गाँवमें, अपने मुहल्लेमें कितने लोगोंको प्रेरित किया? इस कार्यमें मैंने अपना कितना समय लगाया और कितना धन व्यय किया?

प्रत्येक स्वराज्यवादीको अपने मनसे निरन्तर उपर्युक्त प्रश्न पूछने चाहिए सन्तोषजनक उत्तर न मिलने पर वह उसका प्रायश्चित्त करे और अगले दिन और भी अधिक प्रयत्न करें। ऐसा करते हुए निरन्तर जागृत रहकर ही हम आगे बढ़ेंगे और स्वराज्यकी स्थापना करेंगे। यदि करोड़ों व्यक्ति आजसे ही इस प्रवृत्तिमें जुट जायें तो आज ही हमारा छुटकारा हो जाये। एक वर्ष तो बहुत दूरकी बात है। करोड़ों व्यक्तियोंके पास स्वराज्यका सन्देश-मात्र पहुँचानके लिए हमें हजारों स्वयंसेवकोंकी जरूरत है। वे अप्रकट रहकर भी अपना कार्य सुचारु रूपसे कर सकते हैं, उन्हें किसी भी सीखकी आवश्यकता नहीं। अपनेसे आरम्भ करके वे पड़ोसमें कार्य आरम्भ कर सकते हैं। हिन्दुस्तानके किसी स्त्री-पुरुषको इस प्रवृत्तिसे बेखबर नहीं रहना चाहिए, बादमें उनकी बुद्धि इसे स्वीकार न करे तो भले ही वे इस प्रवृत्तिमें भाग न लें। यदि हम हिन्दुस्तानकी समस्त जनताके पास इस सन्देशको पहुँचा सकें तो समझिए कि हमारा आधा कार्य समाप्त हो गया।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १०-१०-१९२०
 

१९०. स्कूल

गुजरातके सरकारी स्कूल खाली होते जा रहे हैं; गुजरात कालेजके दो प्रोफेसर अपना पद त्यागकर राष्ट्रीय शिक्षणके कार्यमें आ जुटे हैं; उन्हें मैं बधाई देता हूँ। मुझे उम्मीद है कि अन्य प्रोफेसर भी इन दोनोंके उदाहरणका अनुकरण करके इस राष्ट्रीय आन्दोलनमें शामिल हो जायेंगे।

लेकिन मुझे अधिक आशा तो विद्यार्थी-वर्गसे है। जब वे लोग स्कूल तथा विद्यापीठोंको खाली कर देंगे, तब अध्यापकों और शिक्षकोंका अपने-आप निकलना सम्भव हो जायेगा। इनके सामने तो इस समय रोटी-रोजीका प्रश्न है; विद्यार्थियोंको तो सिर्फ मोहसे छुटकारा पाना है।

ग्रांट मेडिकल कालेजके दो विद्यार्थियोंने जो अन्तिम वर्षकी परीक्षा देनेवाले थे, परीक्षा नहीं दी। अन्य दो विद्यार्थी स्नातकोत्तर शिक्षाके अध्ययनमें जुटे हुए थे और उन्हें पचास रुपयेकी छात्रवृत्ति मिलती थी; उसको त्यागकर वे मुक्त हो गये हैं और अब राष्ट्रीय शिक्षामें संलग्न हैं। इन विद्यार्थियोंपर मुझे दया नहीं आती, बल्कि मैं यह मानकर कि उन्होंने ऐसा करके उचित ही किया है, उन्हें भी बधाई देता हूँ। अन्य अनेक विद्यार्थियोंने गुजरात कालेज छोड़ दिया है; वह कालेज बिलकुल खाली हो जाये——ऐसी मेरी कामना है। हमारा सबसे पहला पाठ तो यह है कि हम मनुष्य