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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/३९२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बनें। आज तो पुरुष अपना पुरुषत्व और स्त्रियाँ अपना स्त्रीत्व खो बैठी हैं। यदि सारी जनता एक स्वरसे कहे कि हमें पराधीनता नहीं चाहिए तो इसमें स्वराज्यकी कुंजी है। यह ज्ञान कोई धीरे-धीरे आनेवाला ज्ञान नहीं है। जिसे आना है, तुरन्त आयेगा। इसे तो नया जन्म ही समझिए। अपनी पराधीन अवस्थाका भान होना और यह समझना कि हम आजसे स्वराज्य प्राप्त करनेके योग्य हैं, इसीमें स्वतन्त्रता निहित है। हम कौटुम्बिक स्वराज्यसे तो परिचित हैं, लेकिन जब हमें राष्ट्रीय स्वराज्यकी भावनाकी प्रतीति होगी, तब उसी क्षण हमें उसकी उपलब्धि हो जायेगी।

विद्यार्थी-वर्गमें इस भावनाका प्रसार होनेपर ही इस देशकी जंजीरें टूटेंगी। फिलहाल तो विद्यार्थियोंका पहला पाठ होता है साम्राज्यकी शक्तिको पहचानना और यह सीखना कि साम्राज्यके कारण ही हमारा अस्तित्व है। यह ठीक भी है, साम्राज्य अपने स्कूलोंमें कुछ और शिक्षा दे भी कैसे सकता है?

विद्यार्थियोंसे स्कूलों और कालेजोंका परित्याग करनेके लिए कहकर मैं उनको इस परिस्थितिसे बच निकलनेका प्रथम पाठ पढ़ाता हूँ और माता-पिताओंसे अपने इस कार्यमें मदद देनेका अनुरोध करता हूँ। भले ही विद्यार्थिगण शिक्षाविहीन रहें अथवा अल्पशिक्षा प्राप्त करें, किन्तु जब उन्हें आत्मसम्मानकी प्रतीति हो जायेगी तब खुद-ब-खुद सब-कुछ मिल जायेगा। सच तो यह है कि यदि केवल दो-चार विद्यार्थी कालेज आदि छोड़ेंगे तो उनके सम्मुख निःसन्देह यह एक समस्या होगी। लेकिन जब विद्यार्थी हजारोंकी तादादमें स्कूल आदि जाना छोड़ देंगे तब उनके लिए राष्ट्रीय शिक्षाका प्रबन्ध अपने आप हो जायेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १०-१०-१९२०

१९१. सूरतकी प्रतिक्रिया

सूरत, नडियाद और अहमदाबादके बीच होड़ चल रही है। इनमें सर्व प्रथम कौन आयेगा यह तो भविष्य ही बतायेगा। भाई शौकत अली, भाई मुहम्मद अली और मैं जब सूरत गये थे तब वहाँ अपरिमित उत्साह था। गाँवोंसे भी सैकड़ों आदमी आये थे। मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय शालाका उद्घाटन करना था। सूरतमें अनेक संस्थाएँ हैं, उनमें भी अनाविल और पाटीदार छात्रालय प्रमुख हैं। दोनोंमें अच्छी संख्यामें विद्यार्थी पढ़ने आते हैं। प्रश्त यह था कि जिन विद्यार्थियोंने सरकारी स्कूलोंमें जाना छोड़ दिया था वे क्या करें। प्रमुख कार्यकर्त्ताओंको लगा कि इन तथा ऐसे अन्य विद्यार्थियोंके लिए स्कूल खोले जाने चाहिए, फलस्वरूप उन्होंने तुरन्त ही इसका बन्दोबस्त किया। श्री नरमावाला नामक एक मुसलमान सज्जनने इस उद्देश्यके निमित्त किराया लिये बिना अपना विशाल भवन दे दिया। कुछ-एक शिक्षकोंने मुफ्त कार्य करनेका निश्चय किया। अन्य अनेक शिक्षक वेतन लेकर कार्य करेंगे। कार्यकर्त्ता उद्यमी और ईमानदार होंगे तो यह संस्था सुन्दर स्वरूप धारण करेगी। उनके उद्यम और ईमानदारी के बारेमें मुझे तनिक भी शंका नहीं है; अतः [आशा है कि] यह संस्था अवश्य चलेगी।