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प्राथमिक स्कूलोंके अध्यापकोंसे


इसकी देखभाल करनेकी व्यवस्था भी सुन्दर ही है। कपासके व्यापारियोंने प्रति मन चार आने देना तय किया है और दूसरे व्यापारी भी देंगे। इस तरह सूरतमें शिक्षा-कार्यक्रमके स्वावलम्बी बन जानेकी सम्भावना है।

यहाँ वर्तमान स्कूलों और कालेजों आदिको खाली करवानेका आन्दोलन चल रहा है, इसमें भी सफलता मिलनेकी उम्मीद है।

आन्दोलनके इस तरह सन्तोषजनक ढंगसे जारी रहनेके बावजूद मुझे दो बातोंसे निराशा हुई है। एक तो सभामें, थोड़े समय के लिए ही सही किन्तु, अशान्ति रही। सभा चाहे कितनी ही विशाल क्यों न हो, उसे शान्तिपूर्ण ढंगसे चलानेकी क्षमता हममें आनी ही चाहिए। यह तालीमकी, सभ्यताकी, समझदारी और एकताकी निशानी है। सभामें अशान्तिके लिए किसीका कोई विशेष दोष नहीं है, बल्कि इससे यह पता चलता है कि इस दिशामें अभी ठीक तरहसे कार्य करना हमारे लिए शेष है।

दूसरी घटना इससे भी दुःखद थी। हम सूरतसे दिल्लीकी ट्रेनमें सवार हुए; स्टेशनपर हमें विदा करनेके लिए आये व्यक्तियोंकी अच्छी भीड़ थी। उनमेंसे कितने ही व्यक्तियोंने ट्रेनमें बैठे गोरोंका, हालाँकि उन्होंने भीड़की भावनाओंको उकसानेका कोई काम नहीं किया था, "धुत-धुत" करके तिरस्कार और अपमान किया। ऐसे ही कामोंसे हिंसा होनेका भय रहता है। ब्रिटिश साम्राज्यके साथ हमारा चाहे कितना ही विरोध क्यों न हो तथापि व्यक्ति विशेषसे विरोध प्रकट करनेका हमें कोई अधिकार नहीं है। इन भावनाओंपर अधिकार प्राप्त करनेमें ही हमारी विजय सन्निहित है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १०-१०-१९२०

१९२. प्राथमिक स्कूलोंके अध्यापकोंसे

मुझे तो यह विश्वास है कि प्राथमिक स्कूलोंके शिक्षकोंका वेतन बहुत ही कम है लेकिन इस समय मैं उन्हें अधिक वेतनके लिए आन्दोलन करनेकी सलाह नहीं दे सकता। पूरा-पूरा वेतन मिलनेके बावजूद सरकारी सत्ताके अधीन चलनेवाले समस्त स्कूलोंको शिक्षक और विद्यार्थिवर्ग द्वारा विषके समान त्याज्य समझता हूँ। इसलिए प्राथमिक स्कूलोंके शिक्षकोंमें यदि जागृति आ गई है और उनमें यदि पर्याप्त बल है तो उन्हें ऐसे स्कूलोंका परित्याग कर देना चाहिए जहाँ विद्यार्थियोंको मुख्यरूपसे गुलामीकी शिक्षा दी जाती है फिर चाहे इसके लिए उन्हें कितना ही कष्ट क्यों न झेलना पड़े। वे प्राचीन कालके शिक्षकोंकी तरह आज भी भिक्षा-वृत्तिपर निर्भर रहकर विद्यार्थियोंको शिक्षा दें। वैसे मुझे इस बातका पूरा विश्वास है कि यदि शिक्षक आस्थापूर्वक, ईमानदारीसे सरकारी नौकरी छोड़ दें तो जनता अवश्यमेव उनके भरण-पोषणकी व्यवस्था कर देगी।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १०-१०-१९२०