१९३. भाषण : संयुक्त प्रान्त सम्मेलन, मुरादाबादमें
११ अक्तूबर, १९२०
महात्मा गांधीने कहा कि मुझे अपने भाई पण्डित मदनमोहन मालवीयसे भिन्न मत रखनेपर बहुत गहरा दुःख है। मैं चाहता हूँ कि आप सब यह बात ध्यानमें रखते हुए कि पण्डितजी निरन्तर निष्ठापूर्वक देशकी सेवा करते रहे हैं, उनके दृष्टिकोणपर बहुत सम्मानपूर्वक विचार करें। आप अपना निर्णय देते समय अपने मनमें मेरा खयाल न रखें। मेरे विचार अब भी वही हैं जो कलकत्तेमें थे, बहुत गम्भीर चिन्तनके बाद भी मैं यही मानता हूँ कि देशकी स्वतन्त्रताका एकमात्र रास्ता असहयोग ही है और कलकत्तेमें स्वीकार किया गया कार्यक्रम सबसे अच्छा है। मुझसे पूछा गया है कि क्या मैं साम्राज्यसे भारतका सम्बन्ध तोड़ लेनेके पक्षमें हूँ। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि असहयोगके कार्यक्रममें ब्रिटिश साम्राज्य से सम्बन्ध तोड़ लेनेकी बात है लेकिन यह ध्यानमें रखना है कि मेरा लक्ष्य भारतको स्वतन्त्रता दिलाना है। यदि वर्तमान सरकार अपने दोषोंको दूर कर देती है और लोग अपनेको अवसरके अनुकूल सिद्ध करते हैं तथा सरकार और उसके अधिकारी भारतीयोंको बराबरीका दर्जा देते हैं तो ब्रिटिश साम्राज्यसे सम्बन्ध बना भी रह सकता है। लेकिन यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि जनता मालिक है और सरकार उसकी सेवक। यदि लोगोंके साथ बराबरी और साझेदारका व्यवहार किया जाता है तो ठीक है। लेकिन अगर सरकार और अंग्रेज जाति मालिक होनेका दावा करती है तो मैं क्षण-भरको भी इसे बरदाश्त न करूँगा और न उन्हें भारतकी एक इंच भूमिपर ही टिकने दूँगा। भारतको आजादी दिलानेके लिए दो बातें आवश्यक हैं। पहली तो यह कि हिन्दुओं और मुसलमानोंमें एकता हो। मेरा अनुरोध है कि आप दोनों समुदायोंके लोग एक-दूसरेके प्रति सहिष्णुता बरतें। लेकिन हिन्दू होनेके नाते मैं हिन्दुओंसे अधिक खुलकर अनुरोध कर सकता हूँ। आप मुसलमानोंको प्यार करें, उनका विश्वास करें और ऐसा आप अपने धर्मका दृढ़तासे पालन करते हुए भी कर सकते हैं। दूसरी शर्त है असहयोग आन्दोलनको सफल बनाना। [वर्तमान बुराइयोंको दूर करनेका] यही सबसे अच्छा और एकमात्र उपाय है। मैं हिंसामें विश्वास नहीं करता। हिंसासे मौजूदा बुराइयाँ दूर नहीं होंगी बल्कि उससे उन्हें उत्तेजन ही मिलेगा। सरकार खिलाफतके सम्बन्धमें अपने वादोंसे मुकर गई है। उसने पंजाबपर कहर बरपा किया है। इस अपराधपर उसने पश्चात्ताप भी प्रकट नहीं किया। वर्तमान प्रणालीके अन्तर्गत जनता लोगोंको [फौजमें भरती होकर] मैसोपोटामिया जाने और छोटे-छोटे देशोंकी स्वतन्त्रता छीननेसे नहीं रोक सकती। ऐसी सरकारसे सम्बन्ध बनाये रखना अपराध है। इसी सरकारने रौलट अधिनियम बनाया है, इसी सरकारने खिलाफतके सम्बन्धमें अपना वचन-भंग किया है, इसी सरकारने कुख्यात फौजी अदालतोंकी स्थापना की और इसी सरकारने आपके बच्चोंको ब्रिटिश झंडेके सामने सिर