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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/३९५

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निजी तौरपर

झुकाने को मजबूर किया। मेरे विचारसे ऐसी सरकारके साथ सहयोग करना, इसकी विधान परिषदों में बैठना या अपने बच्चोंको इसके स्कूलोंमें भेजना हराम है।

[अंग्रेजी से]
सर्चलाइट, १७–१०–१९२०
 

१९४. अलीगढ़के एक आलोचकको उत्तर[]

१२ अक्तूबर, १९२०

यह काम 'डिस्ट्रक्शन' (खण्डन) का अवश्य है, लेकिन फिलहाल जो खराब घास उग आई है उसे जड़मूलसे उखाड़ने की ही जरूरत है जिससे कि अच्छे अनाजकी बुवाई की जा सके।

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जहाँ आपको घड़ी भरके लिए भी यूनियन जैकको स्वीकार करना पड़ता है, जहाँ किसी भी गवर्नर अथवा किसी अन्य उच्चाधिकारीके आनेपर आपको यह कहनेके लिए विवश होना पड़ता है कि आप उसके प्रति वफादार हैं जब कि आप वफादार नहीं हैं, वहीं आप पलभरके लिए भी कैसे रुक सकते हैं

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जो कालेज स्वतन्त्र हो गया है उसके लिए तो ज्यादासे ज्यादा पैसा आयेगा। और फिर जहाँ मुहम्मद अली और शौकत अली जैसे श्रीमंत हैं वहाँ पैसेकी क्या चिन्ता हो सकती है?[]

[गुजराती से]
नवजीवन, २४–१०–१९२०
 

१९५. निजी तौरपर

मुझे ब्रह्मचर्य के सम्बन्धमें इतने पत्र प्राप्त होते रहते हैं और इस विषय में मेरे विचार इतने दृढ़ हैं कि अब मेरे लिए तत्सम्बन्धी विचारों और अनुभवोंके परिणामोंको 'यंग इंडिया' के पाठकोंके सम्मुख प्रस्तुत करना आवश्यक हो गया है। आज राष्ट्र जिस नाजुक दौरसे गुजर रहा है उसे देखते हुए तो यह और भी जरूरी लगता है।

  1. शौकत अली और मुहम्मद अलोके साथ गांधीजी यूनियन हॉलमें विद्यार्थियोंसे मिले। उपर्युक्त बातें उन्होंने किसी व्यक्ति द्वारा आलोचनाके प्रत्युत्तर में कही थीं।
  2. महादेव देसाई यात्रा-विवरणसे संकलित।