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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनके लिए पदार्थ-पाठ बने रहते हैं और वे उसे आसानीसे ग्रहण कर लेते हैं। ये लोग अपनी वासनाओंकी अन्धाधुन्ध तुष्टिमें लगे रहकर अपने बच्चोंके सामने निर्वाध स्वैरताका उदाहरण पेश करते हैं। इस तरह असमय पैदा होनेवाले प्रत्येक बच्चेके जन्मपर परिवारमें आनन्द मनाया जाता है और दावत होती है। आश्चर्य तो यह है कि अपने इस परिवेशके बावजूद हममें जो थोड़ा-बहुत संयम है वह कैसे है! मुझे इस बारेमें तनिक भी सन्देह नहीं कि विवाहित लोगोंको चाहिए कि अगर वे देशका हित चाहते हैं तथा भारतको सशक्त, सुन्दर और सुडौल स्त्री-पुरुषोंसे युक्त राष्ट्रके रूपमें देखना चाहते हैं तो उन्हें कुछ समय के लिए पूर्ण इन्द्रिय-निग्रहका पालन करके सन्तानोत्पत्ति बन्द कर देनी चाहिए। मैं नव-दम्पतियोंको भी यही सलाह दूँगा। किसी चीजको करनेके बाद छोड़ने की अपेक्षा उसे शुरू ही न करना अधिक आसान है; ठीक वैसे ही जैसे पियक्कड़ अथवा यदा-कदा शराब पीनेवाले व्यक्तिकी अपेक्षा अत्यन्त शुद्ध जीवन व्यतीत करनेवाले व्यक्ति के लिए शराबसे दूर रहना अधिक आसान होता है। गिरकर उठनेसे, सीधे खड़े रहना निश्चय ही ज्यादा आसान है। यह कहना गलत है कि संयमकी शिक्षा निरापद होकर तो परितुष्टोंको ही दी जा सकती है। इसके अलावा जो व्यक्ति भोग करके बिल्कुल अशक्त बन चुका है उसे संयमका पाठ पढ़ानेका कोई अर्थ भी नहीं हो सकता। मेरा कहना यह है कि हम चाहे युवा हों अथवा वृद्ध, तृप्त हों चाहे अतृप्त फिलहाल हमारा कर्त्तव्य यह है कि हम अपनी गुलामीके उत्तराधिकारियोंको जन्म न दें।

मैं माता-पिता से कहना चाहूँगा कि वे 'पति-पत्नीके अधिकार' के तर्क-जालमें न पड़ें। यह एक स्पष्ट सत्य है कि स्वीकृतिकी आवश्यकता विषय-भोगके लिए होती है, संयमके लिए नहीं।

आज, जब हम एक शक्तिशाली सरकारके मृत्यु-पाशसे छुटकारा पानेकी कोशिश कर रहे हैं, हमें शारीरिक, आर्थिक, नैतिक, भौतिक और आध्यात्मिक सभी प्रकारकी शक्तिकी आवश्यकता होगी। यह शक्ति हममें तबतक नहीं आ सकती जबतक हम एक निश्चित ध्येय अपने मनमें प्रतिष्ठित न कर लें और उसे सब वस्तुओंसे ऊपर न मानें। इस तरहके व्यक्तिगत शुद्ध जीवनके बिना हमारा देश सदा गुलाम बना रहेगा। यदि हम यह सोचें कि वर्तमान शासन-व्यवस्था भ्रष्ट है इसलिए जातिगत गुणोंमें भी अंग्रेज हमसे हीन हैं तो यह हमारा भ्रम ही होगा। वे लोग बुनियादी अच्छाइयोंको आध्यात्मिकताका कोई बाना पहनाये बिना कमसे कम शारीरिक रूपसे उनपर प्रचुर मात्रामें आचरण करते हैं। अपने देशकी राजनीतिमें व्यस्त अंग्रेजोंमें, हमारे यहाँसे कहीं अधिक अविवाहित स्त्री-पुरुष हैं। हममें भिक्षुणियोंको छोड़कर अविवाहित स्त्रियाँ तो लगभग नहींके बराबर हैं और ये भिक्षुणियाँ देशके राजनीतिक जीवनको किसी भी रूप में प्रभावित नहीं करतीं। लेकिन यूरोपमें हजारों स्त्री-पुरुष ब्रह्मचर्यको एक साधारण गुण मानते हैं।

अब मैं पाठकोंके सामने कुछ सरल नियम रख रहा हूँ। इनका आधार केवल मेरा ही अनुभव नहीं है, मेरे अनेक सहयोगियोंका भी ऐसा ही अनुभव है।