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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थी। हम इस लड़ाईमें असहयोगके हथियारका उपयोग करके जीतना चाहते हैं। यहाँ अनुशासनको और भी अधिक आवश्यकता है। दूसरी शर्त है——हिन्दू-मुस्लिम एकता। यह एकता जबानी जमा-खर्चकी नहीं बल्कि हृदयोंकी एकता होनी चाहिए। हिन्दुओं और मुसलमानोंकी समझमें ज्यों ही यह बात आ जायेगी कि उनके सहयोगके बिना ब्रिटिश शासन असम्भव है, और ज्यों ही वे उन्हें अपना सहयोग देना बन्द कर देंगे, त्यों ही विजय हमारे हाथमें होगी। वे अपनी शक्तिका परिचय खून-खराबी या आगजनीके कामोंके द्वारा नहीं करा सकते। अपनी शक्तिका परिचय तो वे आत्मोत्सर्ग और समर्पणके कार्यों द्वारा ही दे सकते हैं। वक्ताने कहा, मेरा दृढ़ विश्वास है कि बलिदान ही सचाईकी सच्ची कसौटी है और सचाई तबतक विजयी नहीं होती जबतक उसके पीछे बलिदानको सच्ची भावना न हो। अपने भाषणमें वक्ताने लोगोंसे मार्मिक अपील करते हुए कहा कि वे अपने बच्चोंको सरकारी स्कूलोंसे निकाल लें, अदालतों और कौंसिलोंके चुनावोंका बहिष्कार करें तथा विलासिताका जीवन छोड़कर स्वदेशीको अपनायें।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, २१-१०-१९२०

 

१९७. भेंट : लखनऊमें समाचारपत्रोंके प्रतिनिधियोंको

१५ अक्तूबर, १९२०

सर्वश्री गांधी, मुहम्मद अली और शौकत अली बम्बई मेलसे आज सवेरे यहाँ पहुँचे।... एक पत्र-प्रतिनिधि द्वारा यह पूछे जानेपर कि वे सुधारोंका समर्थन करनेवालोंका नेतृत्व तथा सरकारके साथ सहयोग क्यों नहीं करते, श्री गांधीने उत्तर दिया: वह मेरे लिए बहुत भयंकर बात होगी। मैं तो इस जनसमूहका ही नेतृत्व करना पसन्द करूँगा। मैंने पिछले तीस वर्षोंसे लगातार सरकारसे सहयोग करनेका प्रयत्न किया है, लेकिन अब मैं ऐसा नहीं कर सकता। यह सरकार दुष्ट है और शैतानीसे भरपूर है, जिसने अपना वचन तोड़ा है। अगर मुझे लॉयड जॉर्जसे बात करनेका अवसर मिले तो मैं उनके मुँहपर यह बात कहूँ।

यह पूछे जानेपर कि वे अंग्रेजी भाषा तथा डाक व तारका क्यों प्रयोग करते हैं, श्री गांधीने कहा कि वे अंग्रेजी भाषाका प्रयोग इसलिए करते हैं कि हिन्दीमें उनके अभिप्रायको नहीं समझा जायेगा। डाक और तारके सम्बन्धमें जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वे सरकारी विभागोंको अपनी निजी सम्पत्ति मानते हैं; अगर सरकार उनसे ये दोनों सुविधाएँ छीन ले तो उन्हें प्रसन्नता ही होगी।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १६-१०-१९२०