२००. भाषण : बरेलीमें[१]
१७ अक्तूबर, १९२०
चूँकि आप लोग अब इतने निडर हो गये हैं अतः मैं आपसे यही आशा करूँगा कि आप ऐसे ही बने रहें। अमृतसरमें नगरपालिकासे सरकारने बहुत नीच कृत्य करवाये हैं; यहाँतक कि लोगोंको जल देना बन्द करवा दिया है। इससे घोर कृत्य और क्या हो सकता है? चाहे आपपर कितने ही अत्याचार क्यों न किये जायें, आप अपनी स्वतन्त्रताको बनाये रखनेका प्रयत्न करें, दबावमें न आयें; अमृतसरकी नगरपालिका- जैसा व्यवहार न करें। दूसरी बात मैं यह कहता हूँ कि अगर आप में शक्ति हो तो आप अपने स्कूलोंकी स्वतन्त्रताको बनाये रखें। अगर आप सरकारकी ओरसे मिलनेवाला अनुदान [लेना] बन्द कर दें तो आपके स्कूल स्वतन्त्र हो जायेंगे। मेरी कामना है कि इन दोनों बातोंपर आप खूब विचार करें।[२]
नवजीवन, ३१-१०-१९२०
२०१. भाषण : अमृतसरमें
१८ अक्तूबर, १९२०
श्री गांधीने अल्लाह-हो-अकबर और सत श्री अकालके नारोंके बीच हिन्दीमें अपना भाषण[३]प्रारम्भ किया। उन्होंने कहा इंग्लैंडमें आजकल जो घटनाएँ घट रही हैं श्री मुहम्मद अलीने हमें उनके बारेमें बताया है। वहाँ इस विषयपर विचार किया जा रहा है कि किस तरह उन सभी देशोंको जिनसे होकर भारतमें पहुँचा जा सकता है, वशमें किया जाये अर्थात् यदि सरकार फारस और ईरानपर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहती है तो वह भारतकी गुलामीको स्थायी बनानेके विचारसे किया जा रहा है। कोई भी व्यक्ति एक साथ दो मालिकोंकी सेवा नहीं कर सकता; यदि भारतीय अंग्रेजोंको अपने स्वामीके रूपमें स्वीकार करते हैं तो उसका अर्थ यह होगा कि वे अपने उस सर्वोपरि स्वामीको भूल गये हैं जिसके प्रति उन्होंने जन्मसे ही निष्ठाकी शपथ ली है। आपके सामने अब एक ही विकल्प है, या तो आप अपने भगवान्को छोड़ दें या फिर सरकारका त्याग करें। स्वराज्य प्राप्त करनेके दो ही रास्ते हैं,