२०३. भाषण : लाहौरमें असहयोगपर[१]
१९ अक्तूबर, १९२०
महात्मा गांधीने भाषण आरम्भ करते हुए कहा कि मुझे जफर अलीके जेल भेजे जानेसे अत्यन्त प्रसन्नता हुई है, क्योंकि मेरे खयालसे वे जेल जाकर दरअसल स्वतन्त्र हो गये हैं। जो लोग जनता और सरकारके प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन करते हैं उनके लिए जेल ही एकमात्र स्थान है। मैंन जफर अलीके विरुद्ध लगाये गये आरोप [आपको] पढ़कर सुनाये। जफर अलीने कहा था कि यदि सरकार खिलाफतके सम्बन्धमें हमें न्याय प्रदान नहीं करती तो वह नष्ट हो जायेगी और उन्होंने सभामें उपस्थित लोगोंसे इस बातको दोहरानेको कहा था। जफर अलीके विरुद्ध मुख्य आरोप यही था। मैं इससे भी आगे बढ़कर उपस्थित लोगोंसे न केवल इस बातको दोहरानेके लिए कहूँगा कि अगर सरकार खिलाफतके प्रश्नपर न्याय प्रदान नहीं करेगी तो वह नष्ट हो जायेगी बल्कि यह दोहरानेको भी कहूँगा कि ऐसी सरकारको नष्ट करना हम अपना कर्त्तव्य समझेंगे। (सभामें उपस्थित लोगोंने इसे दोहराया।) जफर अलीको मुक्त करवानेका [सबसे अच्छा] उपाय यह है कि हमें जनताके प्रति पूरी ईमानदारीके साथ अपने कर्त्तव्यका पालन करना चाहिए तथा असहयोगके प्रचारको गति प्रदान करनी चाहिए। तब फिर सरकार हमारे नेताओंमें से किसीको भी जेल नहीं भेज सकेगी। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि मुकदमेके दिनोंमें भी उनको अस्वस्थ होनेके बावजूद अँधेरी तंग कोठरीमें रखा जाता था और जेलका भोजन दिया जाता था। मगर इसके बावजूद सरकार उन्हें तोड़ नहीं सकी और उन्होंने क्षमा-याचना नहीं की। लोगोंको सरकारसे जफर अलीको रिहा करनेकी प्रार्थना नहीं करनी चाहिए; ऐसा करना पाप होगा। हम सरकारसे अनुग्रहकी भीख नहीं माँग सकते।
वक्ताने बादमें महायुद्धके दौरान सिखोंने जिस वीरताका परिचय दिया उसकी चर्चा की और कहा कि उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यको बचाया है तथा अपने मालिकके निर्देशपर तुर्कों, अरबों और मिस्रवासियोंके सिर काट दिये, लेकिन इसका उन्हें क्या फल मिला? यह हमें शेखूपुराके गौहरसिंह तथा मनियाँवालाकी सिख महिलाओंसे पूछना चाहिए।
वक्ताने जोरदार शब्दोंमें घोषणा की कि हमें हिंसाको बढ़ावा नहीं देना है। श्री मुहम्मद अलीके इस कथनका कि भविष्यमें हमें सम्भवतः तलवारका सहारा लेना पड़ेगा और [सरकारके विरुद्ध] जिहाद बोलना पड़ेगा, जिस उत्साहके साथ स्वागत
- ↑ इसका संक्षिप्त विवरण २४-११-१९२० के यंग इंडियामें भी प्रकाशित हुआ था।