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भाषण : लाहौरमें असहयोगपर

किया गया है उसे देखकर मुझे दुःख हुआ है। तलवारका [तो] हमें बिलकुल त्याग कर देना चाहिए। हिंसा द्वारा पंजाब अथवा खिलाफतके अन्यायका निराकरण होना सम्भव नहीं है। हमें हिंसाके माध्यमसे स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं करनी है। मेरे लिए तो अहिंसात्मक असहयोग ही आरम्भ है और वही इति है।

वक्ताने आगे कहा कि कुछ लोगोंने मुझे बताया है कि पंजाबमें ऐसे प्रमुख नेता नहीं हैं जो असहयोग आन्दोलनका नेतृत्व करनेको तैयार हों। लेकिन लोगोंको स्कूलों व कालेजोंका बहिष्कार करनेके लिए नेताओंकी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए; क्योंकि नेताओंके बिना भी अपने बच्चोंको सरकारी अथवा सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों व कालेजोंसे उठाया जा सकता है। यह जाननेके लिए भी किसी नेताकी जरूरत नहीं है कि लेफ्टिनेंट कर्नल फ्रेंक जॉन्सनने लाहौर कालेजके विद्यार्थियोंको गर्मियोंकी तपती दोपहरीमें प्रतिदिन सोलह मील पैदल चलाया; कोई भी व्यक्ति अपने बच्चोंको ऐसी सरकारी संस्थाओंमें भेजकर, जहाँका वातावरण उनके मनुष्यत्वका अपमान करता हो और उन्हें होन बनाता हो, इस प्रदेशकी भावी पीढ़ीको गुलाम नहीं बनाना चाहेगा। अदालतोंका बहिष्कार करनेके सम्बन्धमें भी यही बात लागू होती है। अपने कर्जदारोंसे कर्ज वापस लेनेके लिए आप अदालतोंका आश्रय न लें। दो विरोधी दल किसी ऐसे तीसरे व्यक्तिके पास जायें जिसपर दोनोंको विश्वास हो और उससे अपने झगड़ोंका निपटारा करा लें। अगर ऐसा नहीं हो सकता तो महाजनको अन्तिम उपायके रूपमें सरकारी अदालतोंका सहारा न लेकर अपनी रकमको वापस लेनेका प्रयत्न छोड़ देना चाहिए। जिन अदालतोंने अन्यायपूर्वक आपके नेताओंको स्वतन्त्रताका उपभोग करनेसे वंचित रखा है, वे अदालतें, न्याय दिलानेवाली अदालतें कहलानेकी अधिकारी नहीं हैं। इसी तरह स्वदेशीका सिद्धान्त ही एक ऐसा साधन है जिससे हम लंकाशायरके मतदाताओंको प्रभावित कर सकते हैं।

असहयोग आन्दोलनकी सफलताके लिए शुद्ध आचार और दृढ़ चरित्र सबसे प्रमुख शतें हैं। अमृतसरकी महिलाओंने मुझे आन्दोलनकी सफलताके लिए दो बातोंका होना जरूरी बताया है। वे हैं (१) सत्य और (२) स्त्री-पुरुषोंका जितेन्द्रिय होना। जितेन्द्रियका अर्थ उस व्यक्तिसे है जिसने अपनी इन्द्रियोंपर पूर्ण नियन्त्रण कर लिया है। जिस व्यक्तिको अपनी इन्द्रियों तथा वासनाओंपर पूरा अधिकार है तथा जिसने अपनी इच्छाओं और तृष्णाओंपर विजय प्राप्त कर ली है, वही शुद्ध-हृदय व्यक्ति है। ऐसा व्यक्ति ही एकचित्त होकर निडर भावसे भक्तिपूर्वक देशकी सेवा कर सकता है। वह केवल ईश्वरसे डरेगा, सत्यसे प्रेम करेगा तथा संसारके किसी भी मोहका उसपर कोई असर नहीं पड़ सकेगा। जो व्यक्ति शुद्ध जीवनयापन नहीं कर सकता वह असहयोगके योग्य नहीं है।

हिन्दू, मुसलमान और सिख सबको एक होकर विकासशील अहिंसामय असहयोग द्वारा सरकारके हाथों न्याय प्राप्त करनेके लिए लड़ना चाहिए। या तो हम