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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४१०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सबको जेल जाना चाहिए, अथवा हमें अपने निर्दोष भाइयोंको रिहा करवाना चाहिए जो बिना किसी अपराधके जेलोंमें पड़े सड़ रहे हैं। हमारे सामने यही एकमात्र रास्ता रह गया है। इसी मार्गसे हमारे उद्देश्यकी पूर्ति होगी तथा हम अपने अन्तिम लक्ष्यको प्राप्त कर सकेंगे; और वह लक्ष्य है सम्पूर्ण स्वराज्य। इसके अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है। आइये, हम समय रहते अपनी इस यात्राको आरम्भ कर दें।

[अंग्रेजीसे]
ट्रिब्यून, २२-१०-१९२०
 

२०४. उपहाससे...की ओर?

यह बात सभीको स्वीकार करनी पड़ेगी कि असहयोग अब उपहासास्पद तो नहीं रहा। देखना यह है कि अब उसका दमन किया जाना है या सम्मान। हम लिख[]चुके हैं कि किसी बातका मजाक उड़ाना उसका विरोध करनेकी एक सुसंस्कृत पद्धति है। यद्यपि वाइसरायने अनावश्यक रूपसे कठोर शब्दोंमें इसका मजाक उड़ाया, तो भी वह था इसी पद्धतिके अन्तर्गत।

कसौटीका समय आ गया है। जब किसी सभ्य देशमें कोई आन्दोलन उपहासके बावजूद बल पकड़ लेता है, तब वह ससम्भ्रम देखा जाने लगता है। प्रतिद्वन्द्वी उसका मुकाबला सम्मानपूर्ण सुसंगत तर्कों द्वारा करते हैं और प्रतिद्वन्द्वी दलोंका पारस्परिक व्यवहार कभी हिंसाका रूप धारण नहीं करता। प्रत्येक दल शुद्ध तर्कों द्वारा ही एक दूसरेको अथवा उन लोगोंको जो अभी दुल-मुल हैं, अपने दलमें शामिल करना चाहता है।

अब इस बातमें बहुत थोड़ा सन्देह रह गया है कि परिषदोंका पूर्णरूप से बहिष्कार भले न हो वह व्यापक अवश्य होगा। विद्यार्थी क्षुब्ध हैं। किसी भी दिन महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ सच्चे अर्थोमें राष्ट्रीय संस्थाओंका रूप धारण कर सकती हैं। पं॰ मोतीलाल नेहरू अपनी वकालत छोड़ दी है। उनकी वकालत देशके किसी भी वकीलसे कम नहीं थी; इसलिए यह एक महान् त्याग है। अकेली यही एक घटना ऐसी है जो उपहासको सम्मानमें परिवर्तित कर दे सकती है। लोगोंको इसी घटनाके कारण अपन रुखपर गम्भीर विचार करना चाहिए। पण्डित मोतीलाल नेहरूने ऐसा किया, इसका अर्थ ही यह है कि हमारी सरकारमें कोई बहुत बड़ी खराबी है। स्नातकोत्तर विद्यार्थियोंने अपनी फैलोशिप छोड़ दी है और चिकित्सा-शास्त्रके विद्यार्थियोंने अपनी अन्तिम परीक्षा देनेसे इनकार कर दिया है। ऐसी परिस्थितिमें असहयोगको मूर्खतापूर्ण आन्दोलन नही कहा जा सकता।

लोगोंकी इच्छा असहयोगके माध्यमसे बड़े स्पष्ट रूपमें परिलक्षित हो रही है; सरकारको या तो उस इच्छाके आगे झुकना पड़ेगा या उनके आन्दोलनको दमनके द्वारा कुचलनेकी कोशिश करनी पड़ेगी।

  1. देखिए "दमनके बदले उपहास", १-९-१९२० ।