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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४११

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उपहाससे...की ओर?


सभी हालतोंमें सरकार द्वारा किये गये बल-प्रयोगको दमन नहीं कहा जा सकता। यदि अदालतमें किसी व्यक्तिपर हिंसात्मक पद्धतिके प्रचारके अभियोगमें मुकदमा चलाया जाये, तो यह दमन नहीं है। हरएक राष्ट्रको अधिकार है कि वह बल-प्रयोग द्वारा हिंसाको दबाये। किन्तु श्री जफर अली खाँ और पानीपतके दो मौलवियोंपर चलाये गये मुकदमोंसे यह प्रकट होता है कि सरकार हिंसाको रोकने या दबानेकी कोशिश नहीं कर रही है; बल्कि वह तो लोगोंके मतकी अभिव्यक्तिको दबाना चाहती है, क्योंकि उसे उससे असन्तोष फैलने का भय है। इसका नाम है दमन। मुकदमोंका चलाया जाना इस दमनका प्रारम्भ है। अभी दमन जोरपर नहीं आया है; किन्तु यदि इन मुकदमोंसे भी प्रचार नहीं रुका, तो बहुत सम्भव है कि सरकार कठोर दमनका सहारा ले।

प्रजामें असन्तोष न फैलने देनेका दूसरा उपाय केवल असन्तोषके कारणोंको समाप्त कर देना है और उसका अर्थ होगा कि जिस असहयोग आन्दोलनमें देश दिनोंदिन अधिकाधिक हाथ बँटाता जा रहा है, उसका सम्मान करना। सफलता और शक्तिके मदमें चूर सरकारसे पश्चात्ताप या विनयकी अपेक्षा रखना एक बड़ी आशा करना है।

इसलिए हमें यही मानना चाहिए कि जैसे-जैसे असहयोगकी शक्ति बढ़ेगी, सरकार उसी अनुपातमें हिंसात्मक तत्त्वको अधिकाधिक अपने दमनमें दाखिल करती चली जायेगी। सरकारके कार्यक्रमका यह दूसरा दौर होगा। यदि दमनके बावजूद आन्दोलन जीवित बना रहा, तो समझना चाहिए कि सत्यकी विजयका दिन समीप है। हमें उस समय मुकदमों, सजाओं और देश-निकालेतक के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें ऐसे सामर्थ्यका भी विकास करना चाहिए कि नेताओंकी अनुपस्थितिम भी हम कार्यक्रमको आगे बढ़ाते चले जायें। संसारमें ऐसी तो कोई भी सरकार नहीं है जो पूरे राष्ट्रके-राष्ट्रको जेलखानेमें डाल दे। उसे लोगोंकी माँगोंके आगे या तो झुकना पड़ता है या उन्हें राष्ट्रके योग्य शासन-सत्ता सौंपकर स्वयं हट जाना पड़ता है।

यह तो स्पष्ट ही है कि हम अपने इस उद्देश्यको हिंसासे दूर रहकर अपने कार्यक्रमके अनुसार चलते हुए ही प्राप्त कर सकते हैं।

सरकारके सामने विकल्प यही है कि या तो वह हमारे आन्दोलनको तसलीम करे या बर्बरतापूर्ण पद्धति से उसे दबाये। हमारे सामने भी यही विकल्प है कि या तो हम दमनके सामने झुक जायें या फिर उसके बावजूद अपना काम करते रहें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २०-१०-१९२०