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अनुशासनकी आवश्यकता

चाहते हैं कि उनकी अकाल मृत्यु हो जाये, तो जवाब मिलता था, हम दर्शन करनेके लिए मीलों चलकर आये हैं और दर्शन करके ही जायेंगे। मैंने अपना दिल कड़ा कर लिया था और सुबह होनेतक उठा ही नहीं। लेकिन पूरी रात एक क्षण भी सो नहीं पाया। प्यार बुद्धि खोकर कैसा पागलपन कर सकता है, इसका उदाहरण उस रात देखनेको मिला। दारिद्र्य और अपमानके बोझसे दबी, कराहती हुई जनता कुछ इतनी आशा और विश्वास लेकर आती थी कि मानो मेरे पास सुखद भविष्यका कोई सन्देश पड़ा हुआ है। मुझे देखनेके लिए वे चारों तरफसे पैदल चलकर आते थे।

विश्वास तो मुझे भी हैं कि मैं उन्हें कुछ सन्देश दे सकता हूँ और कुछ राहत भी, लेकिन...?

हाँ, बहुत बड़ा 'लेकिन' इसके साथ जुड़ा हुआ है। आत्मसंयम, अनुशासन और बलिदानके बिना राहत या मुक्तिकी आशा नहीं की जा सकती। अनुशासनहीन बलिदानसे भी काम नहीं चलेगा। सवाल है, खूनमें समायी हुई इस अनुशासनहीनताको अनुशासनमें कैसे परिवर्तित करें। अंग्रेजी संगीनोंका डर या उनका पाखण्ड हममें अनुशासन उत्पन्न नहीं कर सकता। ब्रिटिश अधिकारियोंको शान्त और शान्तिप्रिय, हमारी जनताके स्नेह और स्नेह-प्रदर्शनके प्रति कोई प्रेम नहीं है। अगर उनसे बने तो इस 'जंगली' ढंगके प्रदर्शनको वे उसी तरह शस्त्र-बलसे दबा दें, जिस तरह सर माइकेल ओ'डायरने दबानेकी कोशिश की थी और जिसमें उन्हें लज्जाजनक असफलता प्राप्त हुई थी।

यह प्रदर्शन शस्त्र-बलसे नहीं दबाया जा सकता; किन्तु यदि राष्ट्रके कल्याणकी दृष्टिसे इसका नियमन और नियन्त्रण नहीं किया जा सका तो यह स्वराज्य-प्राप्तिमें भी सहायक नहीं हो सकता। इसमें सफलता और आत्मनाश, दोनों ही बातोंके तमाम तत्त्व निहित हैं। यदि राष्ट्र उस समय जब कि उसके सेवकोंको आरामकी आवश्यकता हो, अत्यधिक प्रेमप्रदर्शन द्वारा उसमें व्याघात उत्पन्न करे तो इससे उनकी शक्तिका अपव्यय होगा और हमने जिस उद्देश्यकी प्राप्तिका वचन दिया है, उसे भी नहीं पा सकेंगे। इसलिए हमें रातको किये जानेवाले प्रदर्शन समाप्त कर देने चाहिए। हमारे लिए अपने छोटेसे-छोटे साथीकी भावनाका ध्यान रखना भी आवश्यक है। हमें यात्रियोंसे भरी हुई पूरी गाड़ीके लोगोंके आराममें बाधा नहीं डालनी चाहिए। हमें अपने प्रिय नेताओंके प्रति स्नेह प्रकट करना चाहिए——सार्थक कार्यों और अथक शक्तिके द्वारा। जो प्यार अपने प्रियके चरण छूने और उसके पास पहुँचकर शोर मचानेसे सन्तुष्ट हो जाता है, भय है कि वह धीरे-धीरे उसके लिए जानलेवा भी हो सकता है। ऐसे प्यारमें गुण नहीं बच रहता, बल्कि कुछ समयके बाद वह एक व्यसन ही बन जाता है और इसलिए दुर्गुण बन बैठता है। यदि प्रदर्शनोंको सार्थक उद्देश्योंकी पूर्ति करनेका साधन बनाना हो तो देशको चाहिए कि वह उन्हें अनुशासित करे। यह एक बहुत बड़ा काम राष्ट्रके सामने है। असहयोगका मन्शा घृणा उत्पन्न करना नहीं है, बल्कि राष्ट्रको इस हदतक पवित्र बनाना है कि वह किसी भी बाहरी या भीतरी हमलेके आगे झुकने न पाये।

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