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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४१५

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ब्रिटिश कांग्रेस कमेटी और 'इंडिया'

उसका इतना ही उपयोग बच रहता है कि वह पार्लियामेन्टके विवरण देता है जिसे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति बहुत कम खर्चपर प्राप्त करके लोगोंमें बँटवा सकती है। यह काम तो कोई भी साहसी समाचारपत्र किसी भी दिन हाथमें ले सकता है और आर्थिक लाभ भी उठा सकता है। हम लोग चूँकि अब असहयोग आरम्भ कर चुके हैं और चूँकि हमने आत्मनिर्भर बननेका संकल्प कर लिया है, हमारे लिए यही समीचीन होगा कि हम ब्रिटिश समितिको समाप्त कर दें और 'इंडिया' को बन्द करवा दें। इससे जनताके पैसेका अपव्यय बचेगा और हम अपनी ओर अधिक ध्यान दे सकेंगे।

कुमारी नॉर्मेन्टनने एक विकल्प सुझाया है कि हम किसी प्रकारकी सलाहकार समिति या सलाहकार रेजिडेंट लन्दनमें रखें जो समय-समयपर प्रस्तावित ब्रिटिश समितिको सुझाव दे। मुझे इस सुझावका समर्थन करना कठिन जान पड़ता है। मैं तो यह चाहता हूँ कि भारतके सर्वश्रेष्ठ काम कर सकनेवाले लोग भारतमें रहकर ही काम करें और सारा ध्यान यहीं लगायें। बड़ी कीमती फसल खड़ी है और काटनेवाले बहुत थोड़े हैं। हम अपना एक भी आदमी विदेशोंमें काम करनेके लिए नहीं भेज सकते। पर्याप्त और ठोस कामके द्वारा भारतमें कोई स्थायी असर पैदा कर चुकनेके बाद ही विदेशोंमें अपने प्रतिनिधि भेजनके औचित्यपर विचार करनेका समय आयेगा।

('इंडिया' की असन्तोषजनक हालतको लेकर लन्दनके एक अन्य प्रतिष्ठित संवाददाताने भी तथ्य लिखकर भेजे हैं। तदनुसार केवल ५०० (!) लोगोंके पास 'इंडिया' भेजा जाता है, जिनमें २२० ग्रेट ब्रिटेनमें और शेष भारतमें हैं। पिछले वर्षकी आमदनी पों॰ ४-१७-० (!!) थी और इस साल उसपर होनेवाला खर्च ३,३०० पौण्ड आँका गया है। इस तथ्यको हमारे संवाददाताने इस प्रकार प्रस्तुत किया है:

'इंडिया' को चलाते रहनेके लिए हम अर्थात् भारतके गरीब लोग १,८०० पौंड हरसाल खर्च करते हैं। इनमें से ५५० पौंड श्री सैयद हुसैनको सम्पादक और सचिवकी हैसियतसे अक्तूबरसे शुरू करके साल- भरमें मिल जाते हैं। श्री फॅनर ब्रॉकवेको संयुक्त सम्पादक और सचिवकी हैसियतसे ५५० पौंड, श्री जी॰ पी॰ ब्लिजेन्डको सचिवकी हैसियतसे १०० पौंड, टाइपिस्टको १५० पौंड और क्लर्कको १५० पौंड मिल जाते हैं।

पत्रकी जिन्दगीमें उतार-चढ़ाव आते रहे हैं; किन्तु प्रचारकी दृष्टिसे तो यह कभी सफल नहीं रहा। इसकी कोई रचनात्मक नीति नहीं रही। जिस साप्ताहिकके कुल ५०० पाठक हों, ऐसे तीसरे दर्जेके साप्ताहिकपर १,८०० पौंड खर्च कर डालना और उसीकी अन्य व्यवस्थापर अतिरिक्त १,५०० पौंड——इस तरह कुल मिलाकर ३,३०० पौंड खर्च करना हमें एक जबरदस्त अपव्यय लगता है। ——सम्पादक, 'यंग इंडिया')

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २०-१०-१९२०