२०८. भाषण : भिवानी सम्मेलनमें
२२ अक्तूबर, १९२०
महात्माजीने कहा कि भगवान्को माननेवाले लोगोंके लिए ऐसी सरकारको सहयोग देना सम्भव नहीं। स्वराज्य प्राप्त करनेके केवल दो मार्ग हैं——एक शक्तिका, दूसरा शान्तिपूर्ण असहयोगका। हिन्दू और मुसलमान, दोनोंने असहयोगका मार्ग स्वीकार कर लिया है। स्वराज्य प्राप्त करनेके पहले दो बातें पूरी हो ही जानी चाहिए। एक तो जनतामें पूरी-पूरी एकता और दूसरी सरकारसे असहयोग। महात्माजीने कहा कि असहयोगके कार्यक्रममें मेरा प्रबल विश्वास है। वह भारतीयोंको आजाद कर सकता है और साल-भरके भीतर स्वराज्य दिला सकता है। ईश्वर स्वार्थहीन बलिदान चाहता है। भारतीयोंको सरकारी अदालतों, सरकारी स्कूलों, सरकारी नौकरियों, पदवियों और कौंसिलोंका बहिष्कार कर देना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे हाथका कता-बुना खद्दर पहनें, स्वयं अपनी पंचायतें कायम करें और दूसरी चीजोंका ध्यान छोड़ दें। हिन्दू और मुसलमानोंकी पूर्ण एकता भारतको स्वतन्त्रता और मुस्लिम भाइयोंको खिलाफतकी समस्यामें मदद देनेवाली सिद्ध होगी।
ट्रिब्यून, २७-१०-१९२०
२०९. स्वराज्य सभा
'अखिल भारतीय होमरूल लीग' को अब 'स्वराज्य सभा' के नामसे पुकारा जायेगा। इसके संविधानको बदल दिया गया है। मुझे स्वीकार करना चाहिए कि 'होमरूल' नाम मुझे सदैव अटपटा लगता था। यदि हम अपने अन्यतम आदर्शको भी विदेशी नामसे पुकारते हैं तो क्यों न हम स्वयं विदेशी बननके आदर्शको अपने संग लेकर चलें? मैं कितने ही शिक्षित भारतीयोंको जानता हूँ जो यह मानते हैं कि हिन्दुस्तानका उद्धार पाश्चात्य पद्धति और पाश्चात्य आदर्शोंका अनुकरण करनेसे ही सम्भव है। ऐसे सज्जनोंमें एक श्री चिन्तामणि[१]हैं। उनके प्रति मेरे मनमें आदर-भाव है। उनके मनमें भी हिन्दुस्तानके प्रति कोई कम प्रेमभाव नहीं है और वे स्वार्थबुद्धिसे ही प्रेरित होकर अधिकांशतया अंग्रेजी रीति-रिवाजोंको पसन्द करते हों सो बात भी नहीं है। अपितु उन्हें ऐसा महसूस होता है कि हम अंग्रेज बनकर ही अंग्रेजोंका मुकाबला कर सकेंगे। कुछ एक भारतीय, जिन्होंने ईसाई धर्मको अंगीकार कर लिया
- ↑ चिरावुरी यज्ञेश्वर चिन्तामणि (१८८०-१९४१); इलाहाबादके प्रसिद्ध दैनिक लीडरके सम्पादक।