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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४२०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सादा उत्तर तो यह है कि देश इस समय इतनी तीव्र गतिके साथ आगे बढ़ रहा है कि हमारे नेता उसकी गतिको सहन नहीं कर सकते। ऐसी परिस्थितिमें दुःखकी अनुभूति होनेके बावजूद आगे कदम बढ़ाये बगैर हमारा छुटकारा नहीं है। हिन्दुस्तानके सम्मुख ऐसा समय फिर सौ वर्षोंतक नहीं आयेगा। इस अवसरको हम छोड़ नहीं सकते। हम केवल इतनी ही उम्मीद करते हैं कि नेतागण जब जन-प्रवाहके वेगको समझेंगे तब वे भी इस प्रवाहमें बहे बिना रह नहीं सकेंगे। इस बीच हमारा कर्त्तव्य यह है कि हम विनयपूर्वक अपने मार्गपर चलते रहें, अपने नेताओंके मतभेदको सहन करें, उनके प्रति आदर भाव रखें लेकिन उनके मतभेद से घबराये बिना हमें दृढ़ता, शान्ति और नीतिपूर्वक आगे बढ़ जाना चाहिए। साँचको आँच आ ही नहीं सकती।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २४-१०-१९२०
 

२१०. पत्र : अलीगढ़ कालेजके ट्रस्टियोंको

२४ अक्तूबर, १९२०

सज्जनो,

आप भारत के सभी मुसलमान विश्वके एक अत्यन्त नाजुक विषयपर अपना निर्णय देनेके लिए इकट्ठे होने जा रहे हैं। मैंने सुना है कि आपने अपनी बैठकके अवसरपर सरकार और पुलिसकी मदद माँगी है। यह अफवाह सच हो तो आप निश्चित समझिये कि ऐसा करके आप बहुत बड़ी भूल करेंगे। अपने सर्वथा घरेलू मामले में आपको न तो सरकारी हस्तक्षेपकी आवश्यकता है और न पुलिसके संरक्षण की। अलीभाई या मैं, दोनोंमें से कोई भी पशुबलकी लड़ाई में थोड़े ही लगे हैं। हमारी छेड़ी हुई लड़ाईमें एकमात्र हथियार जनमत है और यदि हम जनताको अपने पक्षमें न रख सके, तो हम अपनी हार स्वीकार कर लेंगे। [हमारे बीचके] इस झगड़ेमें भी लोकमतकी परीक्षा आपको बहुमत मिलने से ही होगी। इसीलिए इस मामलेकी पूरी चर्चा कर लेनेके बाद भी आप बहुमत से इस नतीजेपर पहुँचें कि यदि कालेज या स्कूलके छात्र संस्थाको सरकारसे असम्बद्ध करने और सरकारी सहायता अस्वीकृत करनेके विषयमें अपना आग्रह नहीं छोड़ देते तो उन्हें छात्रावासमें रहने या केवल कालेजमें आकर पढ़ते रहनेका अधिकार नहीं है, तो वे शान्तिपूर्वक चले जायेंगे। उस हालतमें यथासम्भव अलीगढ़में और न हो सके तो अन्यत्र, हमने उनकी शिक्षा जारी रखनेका विचार किया है। इच्छा तो यह है कि उनका धर्मनिरपेक्ष शिक्षण जितना बिलकुल जरूरी है उससे अधिक एक क्षणके लिए भी न रुके परन्तु यह शिक्षा इस्लामके कानून और भारतकी इज्जतके अनुसार देनेकी हमारी दिली ख्वाहिश है। मैंने इस बारेमें मशहूर उलेमाओंकी राय ले ली है और उनका यह मत है कि जिस सरकारने पवित्र