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पत्र : अलीगढ़ कालेजके ट्रस्टियोंको

खिलाफतको नष्ट करने या जजीरत-उल-अरबके[१]इस्लामी अधिकारमें हस्तक्षेप करनेके प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रयत्न किये हैं, उससे कोई धर्मनिष्ठ मुसलमान सहायता नहीं ले सकता। यह तो आप भी हमारे जितना ही जानते हैं कि इस हुकूमतने भारतकी इज्जतको किस प्रकार इरादतन मिट्टीमें मिलाया है। इन कारणोंसे लोगोंका जोश काबूमें रखनेकी सावधानीके साथ, जनता सरकारके साथका सारा स्वेच्छापूर्ण सम्बन्ध तोड़ रही है। ऐसी हालतमें मेरा खयाल है कि आपको कमसे कम इतना तो करना ही चाहिए कि आइन्दा सरकारी मदद लेनेसे इनकार कर दें, अपनी महान् संस्थाको सरकारसे स्वतन्त्र बना लें और मुस्लिम विश्वविद्यालयके लिए मिला हुआ चार्टर (अधिकारपत्र) लौटा दें। और यदि आप इस्लाम और भारतकी पुकार अनसुनी कर दें, तो अलीगढ़-संस्थाके छात्रोंको, जिस सरकारने इस्लाम और भारतकी वफादारीका सारा हक खो दिया है उसकी छत्रछाया स्वीकार करनेवाली, आपकी संस्थाकी परछाईंतक छोड़ देनी चाहिए। तब उन्हें इस अलीगढ़के स्थानपर अधिक विशाल, अधिक उदात्त और अधिक निर्मल अलीगढ़——उसके महान् संस्थापकके हृदयकी आकांक्षाओंको पूरा करनेवाला अलीगढ़——खड़ा करना चाहिए। मेरी तो कल्पनामें भी नहीं आ सकता कि स्वनामधन्य स्वर्गवासी सर सैयद अहमद[२]अपनी महान् संस्थाको मौजूदा सरकारके अधिकार या प्रभावमें एक क्षण भी रहने देते।

चूँकि मैं अलीगढ़ संस्थाको सरकारी नियन्त्रण और सरकारी सहायतासे अलग करानेके विचारका जन्मदाता हूँ, इसलिए मेरा खयाल है कि आपकी चर्चाओंके समय यदि मैं आपकी बैठकमें उपस्थित रहूँ, तो शायद सहायक सिद्ध हो सकता हूँ। इसलिए यदि मुझे उपस्थित रहनेकी आज्ञा देंगे, तो मैं आनन्दसे अपनी सेवाएँ अर्पण करनेको तैयार हूँ। इस समय मैं बम्बई जा रहा हूँ और वहाँ आपके उत्तरकी प्रतीक्षा करूँगा।

परन्तु आप मुझे सभामें बुलायें या न बुलायें, फिर भी कृपा करके इस साफ घरेलू मामलेके बीच सरकारको हरगिज न डालिये।

और आपकी मार्फत मुझे इस सरकारको भी थोड़ा-सा कह लेने दीजिये। आजकल मेरे और अली भाइयोंके बारेमें सरकारके इरादोंके सम्बन्धमें अफवाहें उड़ती रहती हैं। मैं आशा रखता हूँ कि सरकार लड़ाईको अपने मार्गपर शान्तिपूर्वक अग्रसर होने देगी और ऐसा हो सके, इसलिए हमारी स्वतन्त्रतापर अंकुश नहीं लगायेगी। हम अपनी बातका प्रचार अत्यन्त वैधानिक रीतिसे करनेकी कोशिश कर रहे हैं। हम प्रयत्न कर रहे हैं कि सरकारको लोगोंकी इच्छाके सामने झुकायें और ऐसा करनेको वह तैयार न हो, तो पशुबलका आश्रय लेकर नहीं, परन्तु शुद्ध लोकमतके जोरसे उसे उलट दें। हम मानते हैं कि सरकारकी शैतानियतका पर्दाफाश करना और लोगोंसे अपनी इच्छा शब्दों में नहीं बल्कि कार्यके द्वारा, यानी सरकारसे अपना सारा सम्बन्ध

  1. हेजाजके पवित्र स्थान। २९ मार्च, १९२०को भारत सरकारने इस बातकी पुष्टि की कि ये स्थान स्वतन्त्र मुस्लिम सत्ताके ही अधीन रहेंगे।
  2. १८१७-१८९८; शिक्षा-शास्त्री एवं सुधारवादी; मोहम्मडन ऐंग्लो ओरिएण्टल कालेज, अलीगढ़ के संस्थापक।