सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३९४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तोड़कर, व्यक्त करनेके लिए कहना सर्वथा वैध, न्यायपूर्ण और अच्छा काम है। और लोगोंसे सरकारके साथ असहयोगकी बात हम उनकी पशु-वृत्तियोंको उकसाकर नहीं बल्कि उनकी बुद्धि और उनके हृदयको जगाकर ही कहते हैं। फिर भी, यदि सरकारका इरादा विचार-स्वातन्त्र्य और शान्तिपूर्ण कार्यतक को दबा देनेका हो, तो मैं आशा रखूँगा कि वह हमारे विरुद्ध नजरबन्दी या किसी खास प्रान्तमें ही रहने या किसी विशेष स्थानपर न जाने आदिका कोई हुक्म जारी न करके हमें सीधा कैद ही कर लेगी। कारण, हमारी हार्दिक इच्छा है कि इस घड़ी हमारे अपने ही हाथों कानूनका सविनय भंग न हो। परन्तु यदि हमारी घूमने-फिरनेकी स्वतन्त्रतापर अंकुश रखनेका कोई हुक्म हमपर लगाया जायेगा, तो लाचार होकर उसका सविनय अनादर करना हमारा फर्ज हो जायेगा। क्योंकि जबतक हमारी घूमने-फिरनेकी आजादीपर प्रत्यक्ष बन्धन न लगा दिये जायें, तबतक अपने कार्यके हितमें उसका उपयोग करते रहनेके लिए हम कृतसंकल्प हैं।

कष्टके लिए सविनय क्षमाप्रार्थी।

आपका सच्चा सेवक,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २७-१०-१९२०
 

२११. पत्र : मुहम्मद अली जिन्नाको

लैबर्नम रोड
बम्बई
२५ अक्तूबर, १९२०

प्रिय श्री जिन्ना,

मैं अभी एक लम्बे दौरेसे लौटा हूँ। आपका और आपके १९ अन्य साथियों द्वारा मेरे नाम लिखा गया वह पत्र मुझे मिल गया है जिसमें आप लोगोंने स्वराज्य सभाकी सदस्यतासे त्यागपत्र दिया है——स्वराज्य सभा जो अभीतक अखिल भारतीय होमरूल लीगके नामसे जानी जाती थी।

मुझे इस बातका बहुत अफसोस है कि आप और आपके साथ हस्ताक्षर करनेवाले अन्य सज्जनोंने यह गम्भीर कदम उठाना उचित समझा।

त्यागपत्र देनेका कारण बताते हुए आपने कहा है कि जिस बैठकमें उक्त परिवर्तन किया गया और उसमें जो कार्य-विधि अपनाई गई थी वह " "लीगके नियमों और विनियमों के विरुद्ध" थी और मैंने उस कार्य- विधिको उचित बताते हुए जो निर्णय दिया वह गलत भी था और मनमाना भी।