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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४३०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

न करके, स्वयं ही प्रयत्न करना। निषिद्ध स्थानोंमें प्रवेश करनेका आग्रह करना असहयोग नहीं माना जायेगा। अगर शान्तिपूर्वक ऐसा किया जाये तो अलबत्ता यह सविनय अवज्ञा माना जा सकता है। लेकिन मैंने स्वयं बहुत बड़ी कीमत चुकाकर यह रहस्य जाना है कि सविनय अवज्ञाके लिए बहुत अधिक प्रारम्भिक प्रशिक्षण और आत्मसंयमकी आवश्यकता होती है। असहयोग सभी कर सकते हैं, लेकिन सविनय अवज्ञा बहुत कम लोग कर सकते हैं। अतः हिन्दुत्वके प्रति विरोध प्रकट करनेके लिए पंचम लोग, जबतक उनकी खास शिकायतें बनी रहती हैं तबतक के लिए, बेशक अन्य हिन्दू-वर्गोंसे सारे सम्पर्क और सम्बन्ध तोड़ ले सकते हैं। लेकिन इसके लिए संगठित रूपसे समझदारीके साथ प्रयत्न करनेकी जरूरत होगी। और जहाँतक मुझे दिखाई देता है, पंचमोंके बीच ऐसा कोई नेता नहीं है जो उन्हें असहयोगके माध्यमसे विजय दिला सकता हो।

इसलिए पंचमोंके लिए इससे अच्छा रास्ता शायद यह है कि वे वर्तमान सरकारकी गुलामीका जुआ उतार फेंकनेके लिए आज जो महान् राष्ट्रीय आन्दोलन चल रहा है, उसमें हृदयसे शामिल हो जायें। हमारे पंचम भाई यह आसानीसे देख सकते हैं कि इस बुरी सरकारके विरुद्ध असहयोग करनेकी पहली शर्त यह है कि भारतीय राष्ट्रके विभिन्न अंगोंके बीच परस्पर सहयोग हो। हिन्दुओंको यह समझना चाहिए कि अगर वे सरकारके विरुद्ध सफलतापूर्वक असहयोग करना चाहते हैं तो जैसे उन्होंने मुसलमानोंकी समस्याको अपना बना लिया वैसे ही उन्हें पंचमोंके दुःखको भी अपना बना लेना चाहिए। अगर असहयोगमें हिंसा न हो तो यह तत्त्वतः एक गहरी आत्मशुद्धिका आन्दोलन है। यह प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है और पंचम लोग चाहे जानबूझकर इसमें शामिल हों या नहीं, शेष हिन्दू समाज यदि उनकी उपेक्षा करेगा तो उसकी अपनी ही प्रगतिका मार्ग अवरुद्ध हो जायेगा। इसलिए यद्यपि मुझे पंचमोंकी समस्याका समाधान ढूँढ़नेकी उतनी ही चिन्ता है, जितनी अपने प्राणोंकी रक्षा करनेकी, फिर भी मैं अपना सारा ध्यान राष्ट्रीय असहयोगपर ही केन्द्रित करके सन्तुष्ट हूँ, क्योंकि मेरा यह निश्चित विश्वास है कि इस बृहत्तर समस्यामें वह लघुतर समस्या भी सम्मिलित है।

इसी समस्यासे सम्बद्ध है अब्राह्मणोंकी समस्या। मेरी बड़ी अभिलाषा है कि इस समस्याका अध्ययन मैं और भी अधिक गहराईसे कर पाता। मद्रासमें एक निजी ढंगकी बैठकमें मैंने एक भाषण दिया था। उसके एक हिस्सेको सन्दर्भसे अलग करके पेश किया गया है और इस तरह उसका दुरुपयोग तथाकथित ब्राह्मणों और अब्राह्मणोंके पारस्परिक विरोधको बढ़ानेके लिए किया गया है। मैंने उस बैठकमें जो-कुछ कहा, उसका एक भी शब्द मैं वापस नहीं लेना चाहता। उस बैठकमें मैंने उन लोगोंसे कुछ अनुरोध किया था जो ब्राह्मण माने जाते हैं। मैंने उनसे कहा कि मेरे विचारसे अब्राह्मणोंके प्रति ब्राह्मणोंका व्यवहार उतना ही शैतानियत भरा है जितना शैतानियतभरा हमारे प्रति ब्रिटेनका व्यवहार। मैंने आगे कहा कि बिना-किसी बखेड़े और सौदेबाजीके अब्राह्मणोंको तुष्ट करना चाहिए। लेकिन मैंने जो-कुछ कहा, उसका उद्देश्य