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अलीगढ़

यह कभी भी नहीं था कि महाराष्ट्र या मद्रासकी शक्तिशाली ब्राह्मणेतर जातियों या उनके बीच जो शरारती लोग हैं उन्हें इस बातका प्रोत्साहन दूँ कि तथाकथित ब्राह्मणोंको डराएँ-धमकाएँ। मैं "तथाकथित" शब्दका प्रयोग जान-बूझकर कर रहा हूँ। कारण, जिन ब्राह्मणोंने अन्धविश्वास जनित रूढ़िवादितासे मुक्ति पा ली है, उनका न केवल अब्राह्मणोंसे कोई झगड़ा नहीं है, बल्कि अब्राह्मण लोग जिन बातोंमें पिछड़े हुए हैं उन बातोंमें उन्हें आगे बढ़ानेके लिए भी वे हर तरहसे तत्पर रहते हैं। अपने देशसे प्रेम करनेवाला कोई भी व्यक्ति अगर अपने देशभाइयोंके तुच्छसे तुच्छ वर्गकी भी उपेक्षा करता है तो वह अपने देशको सर्वसामान्य रूपसे आगे नहीं बढ़ा सकता। इसलिए ब्राह्मणेतर जातियोंके जो लोग सरकारको रिझानेकी कोशिश कर रहे हैं, वे अपने-आपको और अपने राष्ट्रको सरकारके हाथों बेच रहे हैं। जिन लोगोंको सरकारमें विश्वास है वे बेशक उसे कायम रखनेके लिए जो सहायता देना चाहें दें, लेकिन जिस भारतीयको अपनी मातृभूमिपर गर्व होगा वह असगुनके लिए कभी भी अपनी नाक नहीं कटायेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २७-१०-१९२०

 

२१४. अलीगढ़

अलीगढ़ विश्वविद्यालय एक पुरानी——पैंतालीस साल पुरानी———संस्था है। इसकी अपनी विशिष्ट परम्पराएँ हैं। इसकी उपलब्धियोंका इतिहास बड़ा गौरवमय है। इसने भारतको अली बन्धुओं-जैसी विभूतियाँ दीं। यह भारतमें इस्लामी संस्कृतिका बहुत ही जाना-माना केन्द्र है।

फिर मैं इसके वर्तमान स्वरूपको ध्वस्त क्यों करना चाहता हूँ? कुछ मुसलमान बहुत आसानीसे ऐसा सोच लेते हैं कि मैं अलीगढ़के कल्याणके बहाने वास्तवमें इसका अकल्याण ही चाहता हूँ। उन्हें शायद यह मालूम नहीं कि मैं अलीगढ़ विश्वविद्यालयमें जो-कुछ करनेकी माँग उसके न्यासियोंसे कर रहा हूँ वही सब हिन्दू विश्वविद्यालयके सम्बन्धमें करनेका अनुरोध मैं पंडितजीसे[१]भी कर रहा हूँ। और मैं निश्चय ही बनारसके विद्यार्थियोंको भी वही बातें समझानेवाला हूँ जो बातें मैंने अलीगढ़के विद्यार्थियोंको समझानेकी कोशिश की है। मैंने खालसा कालेजके सम्बन्धमें भी यही किया है। यह कालेज सिख संस्कृतिका एकमात्र केन्द्र है।

मेरी यह उत्कट इच्छा है कि इन स्वतन्त्र संस्थाओंके वर्तमान स्वरूपको नष्ट कर दूँ, और फिर मैं इनके स्थानपर आजकी अपेक्षा कहीं शुद्ध और सच्ची संस्थाएँ खड़ी करनेका प्रयत्न करूँगा।

  1. पंडित मदनमोहन मालवीय।