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हमारा पिछला दौरा

प्रधानाध्यापक अपने स्कूलोंके विद्यार्थियोंको अपेक्षाकृत अधिक स्वतन्त्र वातावरणमें शिक्षा दे सकते हैं।

आर्थिक कारण तो उन्हीं लोगोंके मार्गमें बाधक होता है जो काम नहीं करना चाहते। हमारी संस्थाएँ उस हालतमें नहीं चल सकेंगी, जब शिक्षक और न्यासी लोग अपने न्यासके प्रति ईमानदार नहीं होंगे या अगर राष्ट्र सचमुच ऐसी संस्थाको नहीं चाहेगा। असहयोगका कार्यक्रम इस विश्वासपर आधारित है कि राष्ट्र वर्तमान सरकारसे ऊब गया है और इसे हिंसाका सहारा लिये बिना बदलना चाहता है। अबतक का अनुभव यही बताता है कि राष्ट्र निश्चित रूपसे परिवर्तन चाहता है। अगर इसमें असफलता मिलती है या विलम्ब होता है तो उसका कारण कार्यकर्त्ताओंका अभाव होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २७-१०-१९२०
 

२१५. हमारा पिछला दौरा

हरएक यात्रामें मुझे इतने अधिक अनुभव हो रहे हैं कि उनकी चर्चा करके पाठकोंको उनके परिणामोंसे अवगत कराना मेरे लिए कठिन हो रहा है। इसलिए मैं अबतक जो कह चुका हूँ, उसके साथ अनुशासन और संघटनकी आवश्यकतापर अतिरिक्त जोर देकर ही मुझे सन्तुष्ट होना पड़ेगा। मैं कानपुर तककी अपनी यात्राके विषयमें लिख चुका हूँ। मैं डर रहा था कि कानपुर——मौलाना हसरत मोहानी और डा॰ मुरारी- लालके[१] कानपुरमें——पहुँचकर क्या होगा? दोनों ही बहुत बड़े कार्यकर्त्ता हैं। स्टेशनपर जैसी व्यवस्था होनी चाहिए, वैसी ही थी। जबरदस्त भीड़ हमारी प्रतीक्षा कर रही थी; किन्तु वह इतनी अनुशासित रही कि हम लोग जनताकी दो घनी पंक्तियोंके बीचसे आसानीके साथ बढ़ते चले गये और जबतक मोटरगाड़ियोंमें जाकर अपनी-अपनी जगह नहीं बैठ गये, एक भी व्यक्ति टससे-मस नहीं हुआ। जिस काममें फिजूल ही ३० मिनट चले जाते, उसमें पाँच मिनट भी नहीं लगे। जलूसका कार्यक्रम छोड़ दिया गया था; इससे खुशी हुई। कार्यक्रम भी स्टेशन ही की तरह व्यवस्थित और कामसे-काम रखनेवाला था। हम लोग [डेरेपर] करीब ८ बजे पहुँचे। एक ही दिन वहाँ रुका जा सकता था; किन्तु उतने ही समयमें कार्यकर्त्ताओंके साथ बैठक, 'शिकागो ट्रिब्यून' के श्री फेजर हंटको निजी भेंट, विधवा आश्रम देखना, राष्ट्रीय गुजराती शालाका उद्घाटन, गुजराती महिलाओंकी एक सभा (जिसमें महिलाएँ बड़ी संख्यामें उपस्थित थीं), राष्ट्रीय समझौता अदालतका उद्घाटन, सार्वजनिक सभा और अन्तमें मुलाकातियोंसे बातचीत की। ये सारे ही काम बिना-किसी अतिरिक्त भाग-दौड़ और परेशानीके निपट गये। सार्वजनिक सभाके समय प्रारम्भमें थोड़ीसी गड़बड़ी हुई। यह जान पड़ा

  1. इन्होंने रायसाहबकी उपाधि छोड़ दी थी और संयुक्त प्रांतकी सरकारको तमगा और सनद वापस कर दी थी।