कि स्वयंसेवकोंको पहलेसे कुछ हिदायतें नहीं दी गई हैं; किन्तु थोड़े ही प्रयत्नके बाद वहाँ भी पूरी शान्ति हो गई अतः लोगोंने लम्बे-लम्बे भाषण पूरी तरह शान्त रहकर सुने। मेरा विश्वास है कि जैसे ही हम संगठित हुए और हममें अनुशासन आया वैसे ही हमें स्वराज्य मिल जायेगा। यदि हम सब एक होकर किसी भी विदेशी शक्ति द्वारा शासित होनेसे इनकार कर दें, तो हमारे-जैसे देशको इससे अधिक और कुछ करनेकी जरूरत नहीं है। लखनऊमें इससे बिलकुल उलटा रहा। स्टेशनपर यहाँसे वहाँतक गड़बड़ी-ही-गड़बड़ी थी और लोग उमड़ते चले आ रहे थे। वह अनुशासनहीन स्नेहका प्रदर्शन ही था। सब हम लोगोंतक पहुँचनेके लिए एक-दूसरेको ढकेलते हुए चले आ रहे थे और यह किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था कि इस तरह हमतक पहुँचना असम्भव है। अन्त में मैंने कह दिया कि मैं यहाँसे उस क्षणतक हिलूँगा भी नहीं जबतक भीड़ अपने-आपको संयमित नहीं कर लेती। भीड़ जल्दी ही मेरी बात समझ गई और उसने हमारे निकलनेके लिए रास्ता छोड़ दिया। उसके बाद जलूस निकला——परेशान कर देनेवाला जलूस। मौलाना अब्दुल बारीके यहाँ हम लोग ठहराये गये। हमारे दल में जो हिन्दू शामिल थे उनके लिए उन्होंने एक ब्राह्मण रसोइएका विशेष प्रबन्ध कर रखा था। पाठकोंको याद होगा कि इसी जगह मौलाना जफरुल्मुल्क गिरफ्तार किये गये थे। मौलाना साहब निष्कलंक चरित्रके एक सुसंस्कृत मुसलमान हैं। श्री विलोबीकी हत्या भी लखनऊ से थोड़ी ही दूरपर हुई थी; इसीलिए रातकी सभामें बहुत बड़ी संख्यामें लोग उपस्थित हुए। व्याख्यान बहुत शान्त भावसे सुने गये। अच्छा होता, यदि मेरे पास भाषणोंका सारांश देनेका समय और स्थान होता। हम सबने खीरीकी हत्याकी[१]बातको स्पष्ट किया कि खिलाफत समितिकी सतर्कता के बावजूद ऐसा किस तरह हो गया; और यह भी बताया कि इससे लोगोंमें अनावश्यक आतंक फैला; स्थानीय समितिपर लाँछन लगा तथा इस तरह खिलाफतके उद्देश्यको हानि पहुँची। मुझे इस बातका दुःख है कि सभामें नेताओं में से कोई नहीं आया था, इसलिए सबका ध्यान इस बातकी ओर गया। वे समझते हैं कि असहयोग आन्दोलन हानिकर है। यह तो समय ही बतलायेगा। हमें उनके प्रति निराश नहीं होना चाहिए। वे राष्ट्रके हैं और जिस दिन उनके मनका अविश्वास दूर हो जायेगा, वे भी देशके साथ कदम मिलाकर बढ़ेंगे।
अमृतसर और लाहौरकी अभिभूत कर देनेवाली घटनाएँ मुझे मन मारकर छोड़नी पड़ी हैं। अब मैं भिवानीकी बात करूँगा। अमृतसरमें भी स्टेशनपर बहुत अधिक भीड़ थी, किन्तु वह अनुशासित नहीं थी। हम दूसरे प्लेटफार्मपर उतरे और उसकी आँख बचाकर निकल गये। लाहौरकी भीड़से हम मोटरमें यात्रा करके बचे।
भिवानीतक रातमें जो यात्रा हुई, उसमें आराम नामको भी नहीं मिला। लोग जगह-जगह दर्शनका आग्रह करते रहे। एक आदमीने कहा कि महात्माको आरामकी जरूरत नहीं होती; उनका कर्त्तव्य है कि वे लोगोंको दर्शन दें। जब हम लोगोंने दृढ़तापूर्वक बिस्तर छोड़कर बाहर आने से इनकार कर दिया, तो कुछ लोगोंको सचमुच ही बड़ी निराशा हुई। एकने कहा कि लोगोंकी इच्छाकी परवाह किये बिना दर्शन न देना इस
- ↑ विलोबीकी हत्या।