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२१६. मालवीयजी और शास्त्रियरके बचावमें

सेवामें
सम्पादक
'यंग इंडिया'
महोदय,
"स्कूलों और कालेजोंका व्यामोह"[१] शीर्षक अपने लेखमें महात्मा गांधीने विद्यार्थियोंके स्कूल और कालेज छोड़ देनेके सम्बन्धमें असहयोग कार्यक्रमकी चर्चा की है। यह स्वीकार करते हुए कि इस प्रस्तावको "हानिकर" और "देशके उच्चतम हितोंके विरुद्ध" बताया गया है, वे कहते हैं कि पण्डित मदनमोहन मालवीय इसके सबसे कट्टर विरोधी हैं। इसके बाद वे पण्डितजीके इस रुखका कारण ढूँढनेकी कोशिश करते हैं। और महात्मा गांधीके ही शब्दोंमें, "मैं इसका जो उत्तर ढूँढ़ पाया हूँ वह यह है कि जहाँ पहले वर्गके लोग वर्तमान शासन-पद्धतिको एक खालिस बुराई मानते हैं, वहाँ दूसरे वर्गके लोग ऐसा नहीं मानते हैं। दूसरे शब्दोंमें, मेरे सुझावके विरोधी लोग पंजाब और खिलाफत सम्बन्धी अन्यायोंकी गम्भीरताका पर्याप्त अनुभव नहीं करते।" और वे आगे कहते हैं, "यह सोचा भी नहीं जा सकता कि मालवीयजी और शास्त्रियर इन अन्यायोंको मेरी तरह महसूस नहीं कर सकते। लेकिन मेरे कहनेका तात्पर्य बिलकुल यही है।" हम महात्मा गांधीको विश्वास दिलाते हैं कि उनके प्रति हमारे मनमें अपरिमित और उत्कट सम्मान है, लेकिन इसी कारणसे हम दूसरोंकी ईमानदारीकी ओरसे अपनी आँखें बन्द नहीं कर ले सकते। हम सर्वश्री मालवीयजी और शास्त्रियरको वकालत नहीं कर रहे हैं। वे स्वयं बहुत समर्थ हैं। पण्डितजी द्वारा कौंसिलमें दिया गया ओजस्वी भाषण, जलियाँवाला बाग स्मारकके लिए चन्देको मर्मस्पर्शी अपील, और अभी हालमें बम्बई-स्थित एम्पायर थियेटरमें दिया गया उनका जोशीला भाषण इन सबसे महात्मा गांधीने, निस्सन्देह अनजाने ही, जो बातें उनके विरुद्ध कही हैं, उनका खण्डन हो जाता है। श्री शास्त्रियरने 'सर्वेट ऑफ इंडिया' में[२]जो लेख लिखे हैं और पंजाबकी शोकजनक घटनापर जो भाषण दिये हैं, वे उनकी ज्वलन्त देशभक्तिके प्रमाण हैं। हाँ, यह जरूर है कि श्री गोखलेके इन योग्य उत्तराधिकारीके निष्पक्ष दृष्टिकोणके कारण इनकी देशभक्तिका रूप कुछ सौम्य हो जाता है। इन दोनों महापुरुषोंने खिलाफतके सम्बन्धमें भी अपनी गहरी भावनाको पर्याप्त अभिव्यक्ति दी है।
  1. तारीख २९-९-१९२० ।
  2. भारत सेवक समाज (सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी), पूनाका मुख-पत्र।