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मालवीयजी और शास्त्रियरके बचावमें
महात्मा गांधी स्वयं ही व्यक्तिकी स्वतन्त्रताके सवालपर और अपनी अन्तरात्माकी आवाजके अनुसार चलनेके महत्त्वपर इतना कुछ कह चुके हैं कि हमें यह विश्वास नहीं होता कि अपने किसी भी कामसे वे उस स्वतन्त्रतापर प्रतिबन्ध लगानेकी कोशिश करेंगे या उस आवाजको बन्द कर देनेका प्रयत्न करेंगे। लेकिन वास्तवमें इस लेखमें अप्रत्यक्ष रूपसे, ठीक ऐसा ही करनेकी कोशिश की गई है, यह बात तो समझमें आ सकती है कि लक्ष्यतक पहुँचनेके उपायके बारेमें मतभेद होनेकी काफी गुंजाइश है, लेकिन यह बात समझमें नहीं आती कि कोई महात्मा गांधी-जैसा जबरदस्त व्यक्तिवादी स्वप्नमें भी भिन्न मत प्रकट करनेपर रोक लगानेकी कोशिश कैसे कर सकता है।
अन्तमें, हम महात्मा गांधीसे अनुरोध करते हैं कि वे ऐसी गोलमोल बातें न कहा करें। हम आधुनिक बुद्धसे अनुरोध करते हैं कि वे इस तरह लोगोंकी भावना न उभारें, और जो-कुछ कहें, तर्कके आधारपर ही कहें। हमें विश्वास है कि उन्होंने जो-कुछ कहा है, वे उसके अनौचित्यको समझेंगे और उसका प्रतिकार करने में शीघ्रता करेंगे। हमें भरोसा है कि महात्मा गांधी यह स्वीकार करेंगे कि जैसे सदाशयतापूर्ण उनके विश्वास होते हैं वैसे ही सदाशयतापूर्ण हमारे विश्वास भी हो सकते हैं, और जो विचार-स्वातन्त्र्य वे अपने लिए चाहते हैं। वही विचार-स्वातन्त्र्य हमें भी देंगे, यद्यपि दुर्भाग्यवश हमें उनसे भिन्न मत रखना पड़ रहा है।

आपके,
"स्वदेशी"

मुझे इस पत्रको प्रकाशित करते हुए बड़ी खुशी हो रही है। इस पत्रके लेखकगण मेरे सम्मानके पात्र हैं क्योंकि उन्होंने इन दो महान् देशभक्तोंका बचाव करनेकी कोशिश की है। बड़ा अच्छा होता अगर उन्होंने मुझे अपने नाम भी प्रकाशित करनेकी अनुमति दी होती। फिर भी, मैं पाठकोंको इतना सूचित कर दूँ कि ये सब गुजराती हैं। और यह मेरे लिए गर्वकी बात है कि अन्य लोगोंकी तरह ही गुजराती लोग भी मालवीयजी या शास्त्रियरजीकी देशभक्तिपर आक्षेप करना बरदाश्त नहीं कर सकते। लेकिन सबसे पहले मैं इन मित्रोंको आश्वस्त कर दूँ कि इन दो देशभक्तोंका सम्मान वे मुझसे अधिक नहीं कर सकते। फिलहाल, कुछ बहुत ही महत्त्वपूर्ण मामलोंमें हमारे बीच मतभेद है। मैंने इस मतभेदका कारण ढूँढने की ईमानदारीसे कोशिश की है और इसी निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि खिलाफत और पंजाबके सम्बन्धमें किये गये अन्यायोंको वे उतनी तीव्रतासे अनुभव नहीं कर सकते जितनी तीव्रता से उन्हें में अनुभव करता हूँ। अनुभूतिका मापदण्ड कर्म है, शब्द नहीं। उनका निदान मेरे निदान से भिन्न है। इन दोनों अन्यायोंसे मैं इसी निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि इस सरकारसे मुझे किसी भी अच्छाई- की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। वे ऐसा नहीं मानते, अतः उनके लिए सरकारके साथ सम्बन्ध रखना सम्भव है। लेकिन मेरे लिए, जबतक सरकार अपने कियेपर