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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पश्चात्ताप नहीं करती तबतक उससे कोई सम्बन्ध रखना असम्भव है। सम्भव है, दो सर्जन किसी रोग-विशेषका निदान एक ही करें, और फिर भी एक उसके लिए सिर्फ मरहम और दूसरा उसके लिए गम्भीर आपरेशनका सहारा ले किन्तु इस कारण जो डाक्टर आपरेशन करता है उसके प्रति मनमें आदरका अभाव आ जाना जरूरी नहीं है। और अगर दूसरा सर्जन इलाजके तरीकोंमें इस फर्कका कारण ढूँढ़ने बैठे तो उसे यह कहनेका अधिकार है और उसका यह कहना उचित होगा कि जिसने मरहम लगानेको कहा वह रोगकी गम्भीरताको अनुभव नहीं कर पाया, हालाँकि उसने भी उस रोगको उसी नामसे बताया जिस नामसे दूसरे सर्जनने बताया। मैं पत्रलेखकोंको यह भरोसा भी दिलाना चाहता हूँ कि मैंने इस मामलेमें कोई गोलमोल बात नहीं कही। मैं किसीकी स्वतन्त्रतापर अंकुश भी नहीं लगाना चाहता, किसीकी अन्तरात्मा की आवाज भी बन्द नहीं करना चाहता, और इन दो देशभक्तोंके सम्बन्धमें तो और भी नहीं। इसके वितरीत, मुझमें इतनी विनय है कि मैं कह सकूँ कि यद्यपि मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा निदान और उपचार, दोनों सही हैं, फिर भी वे गलत हो सकते हैं। और जब मैं देखूँगा कि वे गलत हैं तो मैं अपनी गलती स्वीकार करनेमें क्षण-भरकी भी देर नहीं करूँगा। और अन्तमें मैं अपने इन मित्रोंको विश्वास दिलाता हूँ कि किसीकी भावनाको न उभारकर, किसीके जोशको न जगाकर, दुर्बोध से दुर्बोध सत्यको सादेसे-सादे शब्दोंमें——इतने सीधे-सादे शब्दोंमें कि वह अशिक्षित जनसाधारणकी समझमें भी आ जाये——प्रस्तुत करना मैंने अपने जीवनका उद्देश्य बना लिया है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २७-१०-१९२०

 

२१७. भाषण : डाकोरमें

२७ अक्तूबर, १९२०

आप सब और मैं इस यात्रा-स्थानपर इकट्ठे हुए हैं, परन्तु इस समय भारतकी ऐसी विषम स्थिति है, ऐसी दीन दशा है कि हम यात्रा- स्थलपर पहुँचकर भी पवित्रताका अनुभव नहीं कर पाते। और मैं तो इस पवित्र स्थानपर रणछोड़जीके दर्शनोंके लिए नहीं आया हूँ। इस समय रणछोड़रायमें[१]ऋणसे मुक्त करनेकी ताकत नहीं रही। इसका कारण यह है कि हम, जो उनके पुजारी हैं वे, सच्चे पुजारी नहीं रहे; हम अपनी श्रद्धा खो बैठे हैं। यात्रा-स्थान पवित्रताके बजाय पाखण्डके घर बन गये हैं, यह मैं आँखों देख रहा हूँ। इस आपत्तिसे, इस पापसे ईश्वर हमें कब छुड़ायेगा?

मैंने कई बार सुना है कि डाकोरजी में आनेवाले बहुत से लोग अच्छे चाल-चलन से नहीं रहते। यहाँ आते-जाते कुछ स्थानोंपर वे अभद्र व्यवहार करते हैं। मुझे पता नहीं

  1. 'रणछोड़राय' के 'रण' शब्दको 'ऋण' का अपभ्रंश मानकर गुजरात में वैष्णव-भक्त उसका अर्थ 'ऋणसे छुड़ानेवाला' करते हैं।