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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४४१

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भाषण : डाकोरमें

देखे हैं। आपके मुँहसे सरकार की निन्दा भी शोभा नहीं देती। मैंने जो कड़वे घूँट पिये हैं, वे आपने कभी नहीं पिये। वे कड़वे घूँट पीकर मैंने जो शक्ति प्राप्त की है उसकी शतांश भी आपने प्राप्त नहीं की। उससे नाराज होनेके बहुतसे कारण मुझे मिले, परन्तु अपना गुस्सा मैं पी गया। इस अवसरपर भी मैं क्रोधमें आकर एक भी शब्द नहीं बोल रहा, परन्तु अपनी आत्माके ही शब्दोंको दुहरा रहा हूँ। मैं नहीं चाहता कि आप अंग्रेजी राज्यके प्रति क्रोधमें एक वाक्य भी बोलें। अंग्रेजोंकी बुराई देखनेके बजाय आप अपनी ही बुराई देखिये और उसे निकाल दीजिये। तब आप स्वतन्त्र हो जायेंगे——मुक्त हो जायेंगे। मैं अंग्रेजी हुकूमतके ऐब बता रहा हूँ, सो प्रत्यक्षदर्शीके रूपमें ही बता रहा हूँ। इस हुकूमतकी तीस साल सच्चे दिलसे सेवा करनेके बाद मुझे इतमीनान हो गया है कि यह रामराज्य नहीं, रावणराज्य है। इस समय यह हुकूमत मुझे बुरी लग रही है, इसलिए नहीं कि मुझे कोई अंग्रेजोंके प्रति नफरत है, मुझे नफरत तो हुकूमतके प्रति है। जबतक अंग्रेज सरकार पश्चात्ताप नहीं करती, भारतके स्त्री-पुरुषोंसे माफी नहीं माँगती और यह नहीं कहती कि 'हम तुम्हारे नौकर हैं और नौकर बनाकर रखो तो रहना चाहते हैं', तबतक मैं इस हुकूमत के हवाई जहाजों और मशीनगनोंका सामना करने को तैयार हूँ। इसके हवाई जहाज और मशीनगन मुझे डरा नहीं सकते।

इस हुकूमतका सामना करनेमें मुझे धर्मकी बिलकुल हानि होती दिखाई नहीं देती। मौका पड़े तो जैसे मैं लड़केके विरुद्ध असहयोग कर सकता हूँ, वैसे ही हुकूमत के विरुद्ध भी करूँगा। यह भी धर्म है। मनुष्य मात्र भूलोंसे भरा है, पापी है। मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं संयम-धर्म पालता हूँ, फिर भी पूर्ण नहीं हूँ। मुझमें पाप और अपूर्णता भरी है। तो भी मैं पापसे डरता हूँ। मुझमें त्रुटियाँ हैं और उन्हें निकालनेकी मैं कोशिश करता हूँ। मैं उनका गुलाम नहीं हूँ। यह हुकूमत तो पापको ही धर्म मानती है। यह हुकूमत दूसरे देशोंको कुचलकर अपने देशको खुशहाल बनाती है। यह अत्याचार है। मैं दूसरे देशोंको कुचलकर, मिट्टी में मिलाकर भारतको खुशहाल बनाना नहीं चाहता। दूसरोंके धर्मको मिटाकर मैं भारतको उठाना नहीं चाहता। परन्तु यह सल्तनत तो कहती है कि हम बादशाहत के लिए चाहे जो अत्याचार करेंगे। सल्तनत ऐसा कहती ही नहीं, करके दिखाती है। पंजाबमें उसने करके दिखा दिया। मैं कृष्णका पुजारी आप सबसे कहता हूँ कि ऐसी हुकूमतके स्कूल-कालेजों और उसकी अदालतोंको ठुकरा दीजिये। मुझे अपने शरीरके लिए किसीका डर नहीं है। अपना शरीर तो मैं इस हुकूमतको सौंपकर ही यहाँ बैठा हुआ हूँ। अपने हृदयका नेतृत्व आप ईश्वरको ही सौंप दीजिये। उस समय आपकी बेड़ियाँ टूट जायेंगी।

असहयोग सोने-जैसा शस्त्र है, दिव्य शस्त्र है। हिन्दुओंको वह श्रीकृष्ण से मिला है; मुसलमानोंको मुहम्मद पैगम्बरने दिया है; पारसियोंको 'जेन्द अवेस्ता' से मिला है। जहाँ तुम अन्याय देखो; किसी मनुष्यमें अन्यायको मूर्तिमान् देखो, तो उस मनुष्यका त्याग कर दो। तुलसीदासजीने बहुत ही मृदु भाषामें कहा है कि असन्तसे दूर भागो, असन्त अपने समागमसे पीड़ित करते हैं। जैसे दावानलसे दूर भागते