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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४४२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो, वैसे ही असन्त से—अन्याय से भागो। भागनेका ही अर्थ असहयोग है। असहयोग द्वेष या वैर नहीं है। यह तो धर्मात्माका धर्माचरण है। असहयोग बाप-बेटेमें उचित है, स्त्री-पुरुषके बीच कर्त्तव्य है, सगे-सम्बन्धियोंमें फर्ज है। मेरा लड़का मद्य-मांस खाकर आये और मैं उसका वैष्णव बाप उसे अपने घरमें क्षणभर भी रखूँ, तो फिर मुझे रौरव नरकमें ही जाना पड़े। इस असहयोगका रहस्य मैं आपको न समझा सकूँ, तो फिर स्वराज्य एक असम्भव वस्तु है। स्वराज्य लेना हो, तो एक ही उपाय है और वह असहयोग है।

हाँ, तलवार भी जरूर एक उपाय है। परन्तु तलवारके लिए आपने कभी तपस्या की है? तलवार के लिए संयम किया है? इस्लामियोंको तो तुमसे ज्यादा तलवार चलानी आती है। उन्होंने भी जान लिया है कि यह काम तलवारसे नहीं होगा। क्या दो-चार आदमियोंको मार देने से यह सल्तनत डरकर स्वराज्य दे देगी? जो सल्तनत हजारों अंग्रेजोंकी लाशों पर बनी है, जिसने हजारों अंग्रेज, सिख और पठानोंके खूनकी नदियाँ बहायीं हैं, वह सल्तनत क्या पाँच-दस हत्याओंसे डर जायेगी? हरगिज नहीं। मैं अंग्रेजी सल्तनत की निन्दा करता हूँ, परन्तु उसे बहादुर भी बताता हूँ। उसे स्वदेश प्यारा है। उसमें जो राक्षसी भावना है, वह त्याज्य है। मैं तो रावणकी बहादुरीकी भी तारीफ करनेवाला हूँ। तुलसीदासजीने कहा है कि दुश्मन मिले तो रावण-जैसा मिले। लक्ष्मणके साथ लड़नेवाला तो इन्द्रजित्-जैसा होना चाहिए। ऐसी हुकूमतसे लड़ो, तो बहादुरीसे, मैदान में उतरकर, तलवार निकालकर लड़ो। परन्तु वह चीज ताकत से बाहर की है। मैं हिन्दू धर्मको जैसा समझा हूँ, उसके अनुसार हिन्दूको बिना तलवारके ही लड़ना चाहिए, दूसरेका सिर काटने के बजाय अपना ही सिर उड़ा देना चाहिए। मैं स्वयं भारतका बड़ेसे- बड़ा क्षत्रिय होनेका दावा करता हूँ। क्या मैं रिवाल्वरसे पाँच गोलियाँ नहीं चला सकता? क्या मैं किसीको जहर नहीं पिला सकता? मुझे कोई वायुयानमें ले जाये, तो वहाँ से क्या मैं बम नहीं फेंक सकता? परन्तु मैंने इन वस्तुओंका ज्ञानपूर्वक त्याग कर दिया है। मुझे ईश्वरने एक खटमल-तक भी पैदा करनेकी शक्ति नहीं दी, तो फिर किसीको मारनेका काम भी मेरा नहीं है। मेरा काम तो मरनेका है। मैं अपनी, अपनी स्त्री और अपने देशकी रक्षा करनेमें सिर दे दूँ, तब मैं शुद्ध क्षत्रिय हूँ। अशक्त से अशक्त मनुष्य——स्त्रियाँ भी——अपने अन्दर क्षत्रियका स्वभाव पैदा कर सकते हैं; अर्थात् शत्रुसे कह सकते हैं कि हम तो अटल खड़े रहेंगे, तुमसे जो हो सो कर लो। नहीं तो हत्यारा भी क्षत्रिय माना जायेगा, स्त्रीपर हाथ उठानेवाला पुरुष भी क्षत्रियोंमें गिना जायेगा। इसीलिए मैं भारत [के लोगों] से पुकार-पुकारकर कह रहा हूँ कि जो-कुछ करो सो शुद्ध क्षत्रिय-वृत्तिसे करो। मुसलमानोंको गालियाँ देने, मुसलमानोंका तिरस्कार करनेसे तो हमारा धर्मं लज्जित ही होता है। घड़ी-भरको मान लो कि मुसलमान तुम्हें धोखा देते हैं, तो जो शक्ति तुम इस हुकूमत से असहयोग करने में इस्तेमाल करो, वही शक्ति तुम मुसलमानोंसे असहयोग करनेमें काम में लेना। आजतक तुमने मुसलमानोंसे सहयोग किया ही कहाँ है। एक बार उनसे सहयोग करके देखो। तुमने सरकारसे तो खूब सहयोग किया है; और इतनेपर भी हम दुःखी हैं। इसलिए