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भाषण : स्त्रियोंकी सभा, डाकोरमें

कि हम अंग्रेजी राज्यकी छायामें सुखी हैं। परन्तु अब मुझे विश्वास हो गया है कि हम इस सरकारकी छायाके नीचे नहीं बैठे हैं, बल्कि धूपमें झुलस रहे हैं। हमारा धर्म हमसे छूटा जा रहा है। मैंने रास्तेमें इस आशयकी तख्तियाँ लटकी हुई देखीं कि होटलमें जानेसे हम अपना धर्म खो आते हैं। यह सच है, परन्तु अर्द्धसत्य है। ये होटल कब आरम्भ हुए? इस सरकारके राज्यमें। और क्यों हुए? इसलिए कि इस सरकारने हमें ऐश-आराम करना सिखा दिया। अब हम घर छोड़कर बाजारमें स्वाद लेना सीख गये हैं, वैष्णवोंके मर्यादा-धर्मका हमने उल्लंघन कर दिया है। यह सरकार ऐसी है, जो शराब और अफीमका व्यापार करके लाखों रुपये पैदा करती है। शास्त्रमें कहा है कि जो राजा व्यापार करे वह मध्यम है; प्रजाकी रक्षा कर सकनेके लिए ही जो उससे थोड़ा-सा ले वह उत्तम, और जो प्रजाको व्यसनी बनाकर और मद्यपान सिखाकर रुपया पैदा करे वह राजा अधम है। आजकल हमपर ऐसा अधम शासन है, यह मैं तुम बहनोंको सिखाने यहाँ आया हूँ।

'भगवद्गीता' में हमें सिखाया गया है कि हम सबको समान समझें। हिन्दू-मुसलमान तो देशकी आँखोंके समान हैं। उनमें वैरभाव नहीं हो सकता। परन्तु हम इन मुसलमानोंसे नफरत——असहयोग करते हैं, उनसे वैर करते हैं। यह सरकार आज इन मुसलमानोंका धर्म मिटानेपर तुली हुई है। आज वह उनका धर्म मिटाती है, तो कल हमारा धर्म भी मिटा सकती है।

दूसरी बात पंजाबकी है। पंजाबका नाम भी शायद तुमने नहीं सुना होगा। परन्तु हमारे ऋषियोंने पंजाबसे ही भारतमें प्रवेश किया था। पंजाब वह भूमि है, जहाँ बैठकर ऋषियोंने सारे शास्त्र लिखे थे। उसी पंजाबमें सरकारने स्त्रियों और पुरुषोंका अपमान किया है; उसी पंजाबके बच्चोंको कोड़े लगाये हैं; उसी पंजाबके आदमियोंको साँपकी तरह पेटके बल चलाया है। ऐसी सरकारकी प्रभुता स्वीकार करना अधर्म है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि हमें इस रावणराज्यको बदलकर रामराज्य स्थापित करना चाहिए।

मेरा दूसरा अनुरोध आपसे यह है कि आप स्वदेशी धर्मका पालन करने लग जायें। इस सरकारने हमें पाखण्ड सिखाया है। हम यह मानना सीखे हैं कि विलायती कपड़ेसे शरीरकी शोभा बढ़ती है। यहाँ आई हुई बहनें जो कपड़ा पहने हुए हैं, उनमें भी विदेशीपनकी बू है। मिलोंका कपड़ा भी स्वदेशी नहीं है। जितना कपड़ा मिलोंमें बनता है, वह भारतके लिए काफी नहीं। आप कोई भिखारी नहीं हैं। मैंने आपसे भी अधिक गरीब देखे हैं। मैंने ऐसे पुरुष देखे हैं जिन्हें केवल एक लँगोटी ही मिलती है और ऐसी बहनें जिन्हें मात्र जीर्ण-शीर्ण लहँगा मिलता है। आज हिन्दुस्तान स्वदेशी धर्मको अंगीकार कर ले, 'सुन्दर चरखा' सभी बहनें चलाने लगें, खुद कात सकें उतने ही कपड़े पहनें, तो हम आज ही गुलामीसे छूट जायें। पहलेकी स्त्रियाँ गुणोंको ही खूबसुरती मानती थीं। विदेशी कपड़े पहननेवाली तो कुबड़ी है। कपड़े पहनकर सुन्दरताका प्रदर्शन तो वेश्याओंकी मनोवृत्ति है। हम कैसी सीताजी और दमयन्तीको पूजते हैं? क्या बारीक कपड़े पहननेवाली दमयन्ती या बारीक कपड़े पहननेवाली सीताजीको? नहीं,

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