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२२१. पत्र : रघुनाथसहायको

आश्रम
साबरमती
३० अक्तूबर, १९२०

प्रिय महोदय,

आपका पत्र मिला; उसके लिए धन्यवाद। आपने जिस दृश्यका वर्णन किया है, मैं मानता हूँ कि वह बहुत शर्मनाक है। मैं इस मामलेकी छानबीन कर रहा हूँ। यदि आपको उपद्रवोंके सम्बन्धमें कुछ और तथ्य मिल जायें, तो कृपया मुझे फिरसे लिखिए। मैं अपने साथियोंसे बातचीत करनेके बाद आपके साथ पत्र-व्यवहार करनेकी आशा रखता हूँ।

इसमें तो शक नहीं कि इस तरहकी दुर्घटनाएँ बीच-बीचमें होती रहेंगी। ऐसी हिंसात्मक प्रवृत्तियोंको रोकना हम सबका काम होगा। किन्तु मैं यह बात उचित नहीं मानता कि कुछ विद्यार्थियोंके अति उत्साह-दोषसे हम एक बड़ा आन्दोलन बन्द कर दें।

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ७३१३) की फोटो-नकलसे।

 

२२२. पत्र : अखबारोंको

[३१ अक्तूबर, १९२० के पूर्व]

मैं देखता हूँ कि कुछ लोग चायकी दुकानें जबरदस्ती बन्द करवाते हैं[१]और इसमें मेरे नामका दुरुपयोग करते हैं। एक दुकानदारने, जिसकी दुकान और जिसके आदमियोंपर [इस सिलसिले में] पत्थर फेंके गये थे, मुझे इस सम्बन्धमें पत्र भी लिखा है। यह जानकर मुझे बहुत दुःख हुआ है। मुझे यह बिलकुल पसन्द नहीं है। यह ठीक

१.हेड मास्टर, दयालसिंह हाई स्कूल, लाहौर। २५ अक्तूबर, १९२० के अपने पत्रमें उन्होंने गांधीजीको लिखा था: "सैकड़ों लड़के मेरे स्कूलमें घुस आये; खिड़कियाँ और बैंचें तोड़ डालीं; कई विद्यार्थियोंको मारा और बहुत-सी किताबें उठा ले गये। शरारत करनेमें विद्यार्थियोंके साथ कुछ 'बदमाश' भी शामिल हो गये थे। मेहरबानी करके इस तरहके असहयोगके परिणामपर विचार कीजिए। यह आपके विचारोंके अनुरूप अहिंसात्मक नहीं रह सकता...।"

  1. देखिए "चायकी दुकानें", ३१-१०-१९२० ।