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दीवाली कैसे मनायें

हिन्दुस्तानके लोग पतित और कायर हो गये हैं। हिन्दुस्तानके लोगोंमें आज जिस कायरताके दर्शन होते हैं ऐसी कायरता मुगलों अथवा किसी भी राजाके शासन-कालमें नहीं थी, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। यह कायरता अनायास ही नहीं आई है; बल्कि वह जान-बूझकर लोगोंके दिलोंमें पैदा की गई है। इसी कारण इस राज्यको मैं रावणराज्य मानता हूँ। हमें जैसा राज्य चाहिए उसे मैं रामराज्य कहता हूँ। ऐसा रामराज्य तो स्वराज्य ही हो सकता है।

इस राज्यकी कैसे स्थापना की जा सकती है?

प्राचीन कालमें जब जनता कष्टमें होती थी तब वह तपश्चर्या करती थी। प्रजा मानती थी कि पापी राजा उसे अपने पापोंके कारण ही मिलता है, इसलिए स्वयं पवित्र होनेका प्रयत्न करती थी। इस दिशामें पहला कदम यह होता था कि राक्षसको पहचानकर वह उससे दूर रहती, उससे असहयोग करती थी। असहयोग करनेकी हिम्मत होनी चाहिए; उसे प्राप्त करनेके लिए सुखोपभोगका परित्याग किया। जाना चाहिए। राक्षसी राज्यमें रहकर शिक्षा प्राप्त करना, उसके हाथों सम्मानित पदवियोंको ग्रहण करना, उससे अपने झगड़ोंका निर्णय करवाना, उसको कानून रचनेमें मदद करना, उसे सिपाही प्रदान करना, उसके द्वारा तैयार किये गये वस्त्र पहनना और इसके साथ-साथ उस राज्यके नष्ट होनेकी कामना करना तो जिस डालपर बैठे हों उसीको काटनेके समान है। यह तो पाप माना जायेगा और ऐसे राज्यका नाश भी नहीं होगा। तब हम किस तरह दीपावलीका त्योहार मनायें?

१. अगर हमारे बच्चे सरकारी स्कूलोंमें जाते हों तो उन्हें उठा लें।

२. उनके बदले दूसरे स्कूलोंकी स्थापना करें।

३. हम अपने झगड़ोंको अपनी पंचायतोंके जरिये सुलझायें।

४. वकील वकालत छोड़ दें।

५. मतदाता स्वयं मत न देनेका निश्चय करें और दूसरोंसे भी वैसा ही करनेकी प्रार्थना करें। अपने ही मुहल्लेमें अगर कोई उम्मीदवार हो तो दीवालीका अभिनन्दनपत्र भेजते हुए उससे अपना नाम वापस लेनेके लिए कहें।

६. अपने घरोंमें पवित्र चरखोंको प्रतिष्ठापित करें।

७. हाथसे कते हुए सुतका ही कपड़ा तैयार करें और उसके बने वस्त्र पहनकर देशकी खातिर अतिरिक्त भार वहन करें।

इन सब कार्योंके लिए पैसेकी जरूरत तो होती ही है, इसलिए हम यथाशक्ति दान दें, दूसरोंसे धन इकट्ठा करें। यदि जनता मेरी सलाह माने तो इस दीवालीपर मैं उससे केवल स्वराज्यके लिए ही काम करवाऊँ।

दीवालीपर हम इतना तो कदापि न करें:

१. ठाठ-बाट न करें।

२. जुआ न खेलें।

३. तरह-तरहके पकवान न बनायें।

४. पटाखें न छुड़ायें। इन सबसे बचनेवाली रकम हम स्वराज्य-कार्यमें दें।