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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४५२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यह आपद्धर्म है। जब हम अपने मनोनुकूल राज्यकी स्थापना करने में समर्थ हो जायेंगे तब हम निःसन्देह कुछ निर्दोष आनन्दोंका उपभोग कर सकेंगे। लेकिन इस समय तो जनता शोकमें डूबी हुई है, यह प्रजाका वैधव्य-काल है। ऐसे समय जनता रागरंगमें कदापि नहीं डूब सकती।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३१-१०-१९२०
 

२२४. चायकी दुकानें

गुजरातमें चायकी दुकानें बन्द हो गई हैं; यह परिवर्तन साधारण परिवर्तन नहीं है। जिन लोगोंने इस कार्यको हाथमें लेकर पूरा किया उन्हें मैं बधाई देता हूँ। मुझे उम्मीद है कि यह [आत्म-] त्याग कायम रहेगा।

एक जमाना ऐसा था जब हम अपना खान-पान घरमें ही करते थे। और बादमें बाहर खाने-पीनेकी कोई जरूरत ही नहीं रहती थी। अब तो हम खान-पान अधिकतर बाहर ही करते हैं इसलिए हमें अच्छी खुराक नहीं मिल पाती और जो मिलती भी है वह महँगी होती है। यह तरीका गरीबोंके लिए तो बहुत ही मँहगा पड़ता है।

चायमें मुझे तो कोई विशेष गुण नजर नहीं आया, और फिर बाजारमें मिलनेवाली चाय अधिक उबाले जानेके कारण हानिकारक होती है। लेकिन इस आन्दोलनका सबसे अच्छा परिणाम तो यह निकला कि इससे दूधकी बचत हुई है और उसके दाम गिर गये हैं। अगर जनता बराबर ध्यान रखे तो दूधके दामोंको नियन्त्रित रखा जा सकेगा और दूध, घी आदि वस्तुएँ जो गरीबोंके लिए स्वप्नवत् हो गई थीं, सम्भवतः उन्हें मिलने लगेगी।

लेकिन चायकी दुकानोंको लोकमतके बलपर बन्द करवाना एक बात है और पशुबलसे बन्द करवाना दूसरी बात। बम्बईमें इन्हें बलात् बन्द करवानेके प्रयत्न किये जा रहे हैं जो मेरे विचारसे एक भयंकर बात है। इस सम्बन्धमें मैंने वहाँके समाचारपत्रोंको पत्र[]भी लिखा है। मैं उस ओर भी पाठकोंका ध्यान आकर्षित करता हूँ। जोर-जबरदस्ती से चायकी दुकानें बन्द की जायें इसकी अपेक्षा मैं उनका खुला रहना अधिक पसन्द करूँगा। चायकी दुकानें बन्द करवानेका रास्ता यह नहीं कि चाय विक्रेताओंपर जुल्म किया जाये। इसकी बजाय वहाँ जानेवाले ग्राहकोंको समझाना चाहिए। जब ऐसी प्रवृत्ति में मेरा नाम जोड़ दिया जाता है तब मुझे और भी दुःख होता है। किसी भी तरह की जोर-जबरदस्ती में मेरी सहमति हो ही नहीं सकती। मैं जोर-जबरदस्ती को अधर्म मानता हूँ। अच्छेसे-अच्छे कार्य के लिए भी मैं जोर-जबरदस्ती नहीं करना चाहता। स्वराज्य-तक मैं बलपूर्वक नहीं लेना चाहता, तो फिर चायकी दुकानोंको जोर-जबरदस्ती से बन्द करवानेकी इच्छा मैं कैसे कर सकता हूँ?

  1. देखिए "पत्र : अखवारोंको", ३१-१०-१९२० के पूर्व।