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भाषण : मेहमदाबादमें

बस्तीपर बारह हजारका खर्च! इस म्युनिसिपैलिटीको खत्म कर दो, यह आपका कोई काम नहीं करती। वह आपको शिक्षा देती है, परन्तु उस शिक्षासे तो हमें असहयोग करना है। हम अपात्रसे दान कैसे लेंगे? मुझे विद्यापीठके[१]लिए रुपया चाहिए, परन्तु क्या मैं उसके लिए वेश्याओंसे दान लेकर काम चलाऊँगा? शराबकी दुकानोंसे नफा कमाकर चलाऊँगा?

मैं कहता हूँ कि हमारी शिक्षाका रुपया शराबकी दुकानोंसे आता है। हम आबकारी विभाग बन्द कर देने को कहें तो वे कहेंगे कि उस रुपयेके बिना पाठशालाएँ बन्द कर देनी पड़ेंगी। शराबके रुपयेसे पढ़े हुए हमारे वकील, बैरिस्टर, विद्वान् देशका क्या भला करेंगे?

मैं यहाँके लड़कोंको बधाई देता हूँ कि उन्होंने सरकारी पाठशालाओंका त्याग कर दिया। आप आजसे इन लड़के-लड़कियोंको अपने ढंगसे पढ़ायें। शिक्षकोंसे इस्तीफे दिलाओ और आज ही मुहूर्त करो। अपने मकानमें मुहूर्त करो और सरकारी मकान छोड़ दो। म्युनिसिपैलिटीकी शिक्षाका तो यह हल हुआ। दूसरा काम पाखानों और रोशनीका है। वे बुरी हालतमें हैं। म्युनिसिपैलिटी रक्षा तो करती नहीं, क्योंकि पुलिस- विभाग उसके हाथ में नहीं। म्युनिसिपैलिटीके रास्तोंपर धूल उड़ती है। इस प्रकार शिक्षाके सिवा और कोई महत्त्वपूर्ण काम वह नहीं करती। दवाखाना उसका है, परन्तु उसके मुकाबलेमें दो-तीन निजी दवाखाने चल रहे हैं। इसलिए वह उसे मुबारक हो। मतलब यह कि हमें म्युनिसिपैलिटीकी कोई जरूरत नहीं। वह तो एक पूजनीय मूर्ति हुई। आप नौ सौ करदाता मिलकर प्रस्ताव करो कि यह म्युनिसिपैलिटी उठा दी जाये। कहो कि हमें तुम्हारा 'सैनिटरी बोर्ड' नहीं चाहिए, ग्राम- पंचायत नहीं चाहिए। मेम्बरोंको नोटिस दे दो कि म्युनिसिपैलिटी खाली कर दो।

सरकारको जता दो कि हम उसका कर नहीं देंगे। इसमें कानूनका भंग नहीं है, बेअदबी नहीं है। आपको उसकी सेवा नहीं लेनी, इसलिए सरकारके लिए उसमें शिकायतकी कोई बात नहीं हो सकती। आप उसका मुकाबला कर सकते हैं। कुछ समयतक सरकार आपको धमकायेगी। आप मुकाबला करोगे तो आपके घर कुर्की लायेगी। उन्हें घर बेचने देना। छः हजारकी बस्ती गाँव भी खाली कर सकती है। फिर म्युनिसिपैलिटी किसका काम करेगी? परन्तु सरकार ऐसी पागल नहीं कि यहाँतक जायेगी। मैं उसको बुरा कह रहा हूँ परन्तु इतना जानता हूँ कि वह समझदार है। यदि वह ऐसा न करे तो उसे आज ही चले जाना पड़े। परन्तु सरकार अपनी हुकूमत छोड़ना नहीं चाहती।

इस कामको पार लगानेके लिए आपको एकदिल होना चाहिए। इसमें कुछ विरोधी तो निकलेंगे ही। परन्तु विरोधीसे अदबके साथ, नम्रतापूर्वक कहो——"आप हमारे सिरके ताज हैं। हम तो आपसे केवल पंचायतका मत मान लेनको कहते हैं।" यह न हो सके, तो भी उनसे विनय करें कि आप हमारे काममें खलल न डालें।

  1. यहाँ निश्चित रूपसे संकेत गुजरात विद्यापीठकी ओर है जिसकी स्थापना अक्तूबर में हुई थी; देखिए "भाषण : गुजरात महाविद्यालयके उद्घाटनपर", १५-११-१९२० ।