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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी मजबूत कर लें और दुनियाको दिखायें कि उनके उदात्त तथा उदार शासनमें सारा भारत सुखी और सन्तुष्ट है। और यह निश्चित है कि अगर हम चुप रहे और संविधानके प्रति गलत ढंगकी वफादारीसे प्रेरित होकर हमने यवराजका स्वागत किया तो इसका एकमात्र परिणाम यही होगा। इसके विपरीत मेरे खयालसे हमारी वफादारीका तकाजा यह है कि हम महामहिम सम्राट्के मन्त्रियोंके सामने स्पष्ट कर दें कि अगर उन लोगोंने युवराजको भारत भेजा तो हम उनके स्वागतमें सरकार द्वारा आयोजित किसी भी कार्यक्रममें शामिल नहीं होंगे। मैं उन्हें स्पष्ट बता दूँगा कि खिलाफत और पंजाबके सवालोंको लेकर हमारा हृदय बहुत व्यथित है, और ऐसे समय जब कि हम मन्त्रियोंके विरुद्ध अपने अस्तित्वकी रक्षाके लिए लड़ रहे हैं मन्त्रियोंको हमसे यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि हम युवराजका स्वागत करनेके किसी कार्यक्रममें उनके साथ सहयोग करेंगे। जनताको इस शाही यात्राका सच्चा मतलब समझाना हमारा स्पष्ट कर्त्तव्य है। यदि हम वैसा नहीं करते तो हम उसके प्रति अन्याय करेंगे। लोग यह जान लें कि युवराज यहाँ मन्त्रियोंकी सलाह और भारत सरकारकी स्वीकृति और सहमतिसे ही आ रहे हैं। इसलिए यह यात्रा युवराज अपनी इच्छासे नहीं बल्कि मन्त्रियोंकी इच्छासे करेंगे और इस अवसरपर अगर हम उनके भारत आगमनका बहिष्कार करते हैं तो उसका मतलब मन्त्रियोंके पापके लिए युवराजको दण्डित करना नहीं, बल्कि स्वयं मन्त्रियोंको ही दण्डित करना होगा। दूसरे शब्दोंमें, हम उनका उल्लू सीधा करनेका साधन नहीं बनेंगे। मान लीजिए मन्त्रिगण लॉर्ड चैम्सफोर्डके स्थानपर सर माइकेल ओ'डायरको [१]वाइसराय बना दें और यवराजके स्वागतका प्रबन्ध करें तो क्या श्री बैप्टिस्टा हमें सर माइकेलके जालमें फँसने देंगे? फिर मान लीजिए कि वे ठीक युवराजकी आँखोंके सामने पंजाबके नेताओंकी उपेक्षा करके पंजाबका अपमान करते हैं, तो क्या पंजाबको अपमानका यह घूँट पीकर महज इसलिए स्वागतमें शामिल हो जाना चाहिए कि राज-परिवार राजनीतिसे ऊपर है! अगर इसका उत्तर कोई "हाँ" में दे तो वह वफादारी और राजनीतिके अर्थसे अपनी शोचनीय अनभिज्ञता ही प्रकट करेगा।

मैं तो कहूँगा कि मन्त्रियोंकी कार्रवाइयों या गलतियोंसे जितने अधिक असन्तुष्ट हम हैं, उतने असन्तुष्ट अगर आस्ट्रेलियावाले होते तो वे बिना किसी हिचकिचाहटके ऐसी यात्राका बहिष्कार करते। मन्त्रिगण इस यात्रासे अपना राजनीतिक उद्देश्य साधना चाहते हैं, और हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम उन्हें वैसा न करने दें।

मैं श्री बैप्टिस्टाकी इस बातसे सहमत हूँ कि हम इस समय शोक-सन्तप्त हैं। इसलिए वे आशा करते हैं कि युवराजको इस यात्रापर नहीं भेजा जायेगा, लेकिन अगर वे भेज ही दिये जाते हैं तो श्री बैप्टिस्टाका कहना है कि हमें इस शोककी स्थितिके बावजूद उनका स्वागत करना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि युवराज यहाँ आयें, और इसीलिए मैं कोशिश करूँगा कि शोकके कारणोंको दूर किया जाये; मैं उन्हें अटल तथ्य मानकर नहीं बैठूँगा। मैं मन्त्रियोंसे कहना चाहूँगा कि चूँकि हम युवराजका स्वागत

  1. पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर, १९१३-१९; इनके कार्यकालमें जलियाँवाला बागका हत्याकाण्ड हुआ था।