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पंजाबमें स्वदेशी

पूरे उत्साह-उमंगके साथ करना चाहते हैं, इसलिए खिलाफत और पंजाब सम्बन्धी हमारी शिकायतें दूर कर दें। मैं उनसे यह भी कह देना चाहूँगा कि अगर वे ऐसा नहीं करते, और दुराग्रहपूर्वक युवराजको भारत भेज ही देते हैं तो जनताके सामने इस यात्रा या स्वागत-समारोहोंका बहिष्कार करने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा, और उसे इस अटपटी स्थितिमें डालनेकी जिम्मेदारी स्वयं मन्त्रियोंपर होगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ७-७-१९२०

१३. पंजाबमें स्वदेशी

भारत स्त्री महामण्डलकी संयुक्त मंत्रिणियोंने श्रीमती सरलादेवी चौधरानीके[१]बम्बईसे लाहौर लौटनेके बादसे उनकी स्वदेशी-सम्बन्धी गति-विधिका हाल बताते हुए एक रिपोर्ट भेजी है। संयुक्त मन्त्रिणियाँ कुमारी राय और श्रीमती रोशनलाल बताती हैं कि २३, २४ और २५ जूनको लाहौरमें अलग-अलग स्थानोंपर महिलाओंकी तीन सभाएँ हुई। तीनों सभाओंमें श्रीमती सरलादेवीकी बातें सुननेको उत्सुक सैकड़ों महिलाएँ एकत्र हुई थीं। उनके भाषणोंका मुख्य विषय भारतकी घोर गरीबी था। उन्होंने उसके मूल कारणोंपर प्रकाश डालते हुए यह दिखाया कि हमारी गरीबी मुख्यतः लोगोंके स्वदेशी छोड़ देनेका दुष्परिणाम है। इसलिए उन्होंने इसके उपचारके तौरपर स्वदेशीको फिरसे अपनानेकी सलाह दी।

स्वयं सरलादेवी मुझे लिखती हैं कि श्रोताओंपर उनके भाषणोंसे अधिक असर उनकी खद्दरकी साड़ीने डाला; उसके बाद उनके गायनने। इस दृष्टिसे भाषणोंका स्थान अन्तिम रहा। लाहौरकी नेक महिलाएँ उन्हें चारों ओरसे घेरकर खड़ी हो गई और उनकी खुरदरी लेकिन स्वच्छ, सुन्दर साड़ीपर हाथ फेर-फेरकर उसकी सराहना करने लगीं। कुछने इस बातपर हमदर्दी जाहिर की कि जो महिला कलतक कीमती और महीन रेशमी साड़ी पहनती थी उसीने आज हाथ से बनी खुरदरी खद्दरकी साड़ी पहन रखी है। लेकिन सरलादेवी हमदर्दीकी भूखी नहीं थी। उन्होंने छूटते ही कहा कि आप लोगोंने जो अपने शरीरपर ये महीन विदेशी दुपट्टे डाल रखे हैं, वे विदेशी उत्पादकोंपर निर्भर रहनेकी आपकी असहाय अवस्थाके कारण आपके कन्धोंपर भारी बोझके समान हैं, जबकि मेरी खद्दरकी खुरदरी साड़ी मुझे उस आनन्दके कारण पंखके समान हलकी लगती है, जो आनन्द इस बातका स्मरण करके प्राप्त होता है कि मैं बिलकुल आत्म-निर्भर और स्वतन्त्र हूँ। क्योंकि मैंने अपने भाई-बहनोंकी मेहनतसे तैयार किया गया वस्त्र धारण कर रखा है। उनकी इस बातसे श्रोतृ समूह इतना

  1. १८७२-१९४५: रवीन्द्रनाथ ठाकुरको भान्जी, लाहौरके पंडित रामभजदत्त चौधरीकी पत्नी। १९१९ में पति-पत्नी, दोनों गांधीजोके अनुयायी हो गये; अपने लड़के दीपकको उन्होंने शिक्षा प्राप्त करनेके लिए साबरमती आश्रम भेजा था।