एक पैसा भी मेरे लिए लाखके बराबर है। कुमारियाँ मुझे अँगठियाँ और जेवर देती हैं, यह मुझे बहुत प्रिय लगता है; क्योंकि वे ईश्वरको बीचमें रखकर देती हैं। मैं खुशामद करने जाऊँ और लोग तब मुझे रुपया दें, उससे यह हजार दर्जे अच्छा है। यहाँ आप दें तो मेरे सामने नहीं ईश्वरको बीच में रखकर दें।
रुपया वसूल करनेवाले स्वयंसेवक जनताका रुपया हराम समझकर चंदा इकट्ठा करेंगे तभी हमारा काम चलेगा। जनता तो भोली है। मेरे नामसे कोई भी आ जाये, तो उसकी बात मान लेती है। कोई धूर्त स्त्री गांधीजीकी लड़की के नामसे द्वारका में चन्दा वसूल कर रही थी। अब वह हैदराबाद[१] गई है। वहाँ उसका स्वागत-सत्कार हुआ। इस प्रकार लोग मेरे नामसे ठगे जायें, यह मेरे लिए असह्य है। हमारे सामने अहमदाबादवाले मौलवीका उदाहरण है। उसने मेरे ही नामका उपयोग किया। इसलिए में प्रत्येक मनुष्य से स्वच्छता चाहता हूँ। यदि तुम प्रामाणिक बनो, तो मैं तुम्हारी चरणरज लेने को तैयार हूँ। दुनिया में पाखण्डतो हमेशा रहेगा। परन्तु उसे जनता के पास न जाने दो। अगर ऐसा न हो सकें, तो मुझे सरकारी फाँसीका डर नहीं, परन्तु इस फाँसीका बड़ा डर है। इसलिए तुम ईश्वरको बीचमें रखकर चन्दा करना।
लोगों से में कहता हूँ कि किसीका भी नाम लेकर कोई बड़ा तीसमारखाँ आये, तो भी उसे रुपया न देना। खिलाफत कमेटी तथा स्वराज्य सभाकी तरफसे उन संस्थाओंकी मुहरवाले प्रमाणपत्र जारी करनेका मेरा विचार है। जिस मनुष्यके पास प्रमाणपत्र न हो, उसकी मत सुनना, उसे कुछ न देना। उसे खड़े न रहने देना। हम शासन अपने हाथ में लेना चाहते हैं, तो उसे चलानेके लिए हमें दृढ़ बनना पड़ेगा।
सरकारकी गुलामी छोड़कर तुम मेरी गुलामी में आ जाओ, तो वह स्वतन्त्रता नहीं। मैं आपके मन और हृदय चुराना चाहता हूँ। परन्तु आपको गुलाम बनाना नहीं चाहता, क्योंकि मैं स्वयं गुलाम नहीं बनना चाहता।
- [गुजराती से]
- नवजीवन, ७-११-१९२०
२३०. नडियाद नगरपालिकाके पार्षदोंसे बातचीत
१ नवम्बर, १९२०
न केवल शिक्षा के मामलेमें बल्कि हर मामलेमें[२] आप सरकारसे स्वतन्त्र हो सकते हैं। आप नगरपालिकाको अपने हाथमें लें और कर भी स्वयं ही उगाहें। सरकार कुछ समयतक तो दबाव डालेगी और कर इकट्ठा करेगी लेकिन कर देनेवालोंको उसका विरोध करना चाहिए और इससे जो भी स्थिति उत्पन्न हो उसका सामना करना चाहिए।