उठानेका विचार करना।[१] में सरकार होऊँ और मुझे यह मालूम हो कि लोग गांधीके बलपर लड़ रहे हैं, तो में गांधीको जरूर कहूँ।
इसलिए आपकी अपनी हिम्मत न हो, तो आपकी कोई कीमत नहीं होगी। परन्तु जब हम न हों, तो जो आप आज नहीं करते, वह कल करने लग जाना।
स्वयंसेवकोंकी प्रामाणिकताका इतमीनान करके उन्हें रुपया दिया जाये। यह लड़ाई करोड़पतियोंकी नहीं, परन्तु गरीबोंकी है। तीस करोड़ लोग एक-एक पैसा दें, तो भी हमारे पास पचास लाख रुपया हो जायेगा और मुफ्त शिक्षा दी जा सकेगी। में रुपया माँगता हूँ सो दान नहीं माँगता। यह तो आपके स्वार्थकी बात है। आप एक पैसा देंगे तो एवजमें दो पैसेका मिलेगा।
सोलह और आठ वर्षकी छोटी-छोटी बालिकाओंने अपनी अंगूठियाँ और मालाएँ उतारकर मुझे दे दीं।[२] उन्होंने कहा है कि ये चीजें फिर वे अपने माँ-बाप से नहीं माँगेंगीं। कारण वे जेवर पहनकर क्या करेंगी? भारतकी दशा तो विधवा-जैसी है। भारत में पुरुष कहाँ हैं कि वे सधवाओंकी तरह शृंगार कर सकें? ऐसे पुरुष जब निकलेंगे तब भारत सौभाग्यशाली बनेगा और उसकी स्त्रियाँ गहने पहन सकेंगी।
- [गुजरातीसे]
- नवजीवन, १०-११-१९२०
२३२. सन्देश : विल्सन कालेजके विद्यार्थियोंको
बम्बई
[२ नवम्बर, १९२० के पूर्व]
मुझे मालूम हुआ है कि कालेज छोड़ा जाये अथवा नहीं, इस प्रश्नको लेकर विल्सन कालेजके विद्यार्थी बहुत चिन्तित हैं। मेरी इच्छा है कि इस प्रश्नको हल करने में मैं उनकी थोड़ी सहायता करूँ। अगर कोई लुटेरा हमारा धन लूटकर ले जाये, तो जिस प्रकार हम उसके संरक्षण और प्रभावमें संचालित किसी संस्था द्वारा शिक्षित होना पसन्द नहीं करेंगे, उसी तरह हमें उस सरकारके अन्तर्गत भी शिक्षण ग्रहण नहीं करना चाहिए, जिसने हमारा सम्मान लूटा है और जिसने अपने-आपको हमेशाके लिए विश्वासघाती सिद्ध कर दिया है। पंजाबकी काली करतूतों से इस सरकारने हमें अपमानित किया है और मुसलमानोंको आम तौरपर भारतके प्रधान मन्त्री और खास तौरपर साम्राज्यीय सरकार द्वारा दिये गये वचनको भंग भी किया है। इतना सब होनेके बाद भी वह पश्चात्ताप प्रकट नहीं करती, बल्कि खिलाफत और पंजाब में