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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो-कुछ हुआ है, धृष्टताके साथ उसका समर्थन करती है। मैं तो उसके द्वारा संचालित अथवा नियन्त्रित शालाओंमें शिक्षण लेना एक तरहका पाप समझता हूँ। जबतक हमें मुक्ति नहीं मिल जाती, इस शिक्षणके बिना रहना या इन संस्थाओंको बन्द कर देना मैं बेहतर समझता हूँ।

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे क्रॉनिकल, २-११-१९२० तथा अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७३१५) की फोटो-नकलसे

 

२३३. भाषण : भड़ौंचमें

२ नवम्बर, १९२०

इस समय रावणराज्य और रामराज्यमें युद्ध हो रहा है। खुदा और शैतानमें लड़ाई चल रही है। राक्षसों और देवोंमें झगड़ा मचा हुआ है। इस सरकारकी आत्माको मैं राक्षसके रूपमें देख रहा हूँ। जिस दिनसे मेरी आँखें खुल गईं हैं, तबसे मैं इस विचारका प्रचार कर रहा हूँ। मुझे प्रतीति हो गई है कि अंग्रेजी हुकूमत शैतानियतसे भरी हुई है, राक्षस-स्वरूप है। सब धर्म——हिन्दू, मुसलमान, पारसी——सभी धर्म कहते हैं कि अधर्मको धर्मसे हटाना चाहिए। अर्थात् अधर्मकी सहायता करना बन्द कर देना चाहिए। मुस्लिम शास्त्रोंमें ऐसे दृष्टान्त मिलते हैं। पारसी धर्ममें तो अहुरमज्द और अहमनमें सतत युद्ध होता ही रहता है। 'गीता' में भी यही बात है। आज हमारे लिए असहयोग के सिवा और कोई धर्म नहीं है। परन्तु आपका यह खयाल हो कि अंग्रेजी हुकूमत में अब भी कोई ग्रहण करने योग्य वस्तु है, वह पापमय नहीं है तो आप उससे जरूर चिपटे रहिये। मैं यह नहीं कहना चाहता कि अंग्रेज खराब हैं। उनकी पैदा की हुई प्रवृत्ति, उनकी रोपी हुई पापकी जड़, भारतकी हानि कर रही है। लॉर्ड हार्डिंग, लॉर्ड रिपन-जैसे अच्छे वाइसराय और अहमदाबाद के भले और शरीफ क्लेक्टर श्री चैटफील्ड-जैसे कर्मचारी हुकूमतमें हैं जरूर, फिर भी ये लोग राक्षसी काममें लगे हुए हैं और इसलिए राक्षसी प्रवृत्तिका ही पोषण करते हैं। मेरे पिताजी स्वयं एक रियासतमें नौकर थे। उनके राजा अधर्मी थे। मैंने उनसे पूछा, "ऐसे राजाकी नौकरी आप छोड़ क्यों नहीं देते?" उन्होंने कहा, "हमने इनका नमक खाया है।" मेरे पिता नमकहराम नहीं बने, परन्तु हमारा सारा कुटुम्ब विषय, मांस और शराबमें डूबे हुए राजाका आश्रित रहा। मैं सारे भारतके सामने कह रहा हूँ कि हमारे पास और कोई धर्म नहीं है। कितने ही पुण्यवान् पुरुष क्यों न हों, तो भी इस प्रवृत्तिका स्पर्श होनेसे वे अच्छे नहीं रहते। इसलिए जिन शास्त्रीजी और मालवीयजीको मैं पूजनीय मानता हूँ, जिनका निकट सम्पर्क मुझे प्रिय है, जिनके प्रति मेरे मनमें अब भी अत्यन्त आस्था है, उनमें और मुझमें मतभेद हो गया है। उनका खयाल है कि यह राज्य पुण्यमय है, मेरा