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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४६७

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भाषण : अंकलेश्वरमें

वे रुपया न भेजें। खेड़ा और चम्पारनके समय भी लोगोंने रुपयेकी वर्षा कर दी थी। मैंने उसे रोका था। अहमदाबादके मजदूरोंने तेईस दिन प्रचण्ड असहयोग किया, तो भी बाहरसे कोई मदद नहीं माँगी थी। त्याग-वृत्ति हो तो रुपयोंकी बौछार होने लगे।

वैष्णवों, जैनों और स्वामिनारायणके मन्दिरोंमें करोड़ों रुपये जंग खा रहे हैं। उसमें से थोड़ा-सा भाग मिल जाये, तो भी आपके सारे शिक्षा विभागका काम चल जाये। परन्तु जैसे सरकार रुपया लुटाकर आनन-फाननमें सरकारी विभाग खोल देती है, वैसे हम नहीं खोलना चाहते। हमारा काम हिन्दुस्तानकी गरीबीके हिसाब से ही होगा। जादूके आम घड़ी-भरमें उगाये जा सकते हैं, परन्तु उनका रस हम चख नहीं सकते। सच्चे आम उगनेमें बीस वर्ष लगते हैं, इसलिए कोई आपको राष्ट्रीय शिक्षाके लिए करोड़ रुपया दे, तो मैं कहूँगा कि उसे फेंक दो। खालसा कालेजके प्रोफेसरोंसे कहा गया कि यदि गांधी तुम्हें एक करोड़ रुपयेकी 'ग्रांट' दे दे, उसके बाद असहयोग करना। प्रोफेसरोंने कहा कि हम सरकारकी गुलामीसे छूटकर गांधीके गुलाम बनना नहीं चाहते । हम झोपड़ी-झोपड़ी घूमकर सिखोंसे भिक्षा माँगेंगे। उन्हीं प्रोफेसरोंने खालसा कालेजको नोटिस दे दिया है कि सरकारी अधिकार खत्म नहीं होगा तो वे फकीर बनकर देशके बच्चोंको राष्ट्रीय शिक्षा देंगे।

आप यथाभक्ति, यथाशक्ति और बेझिझक भरसक दान दें। इसका उपयोग आपके गाँवके लिए ही नहीं होगा। अहमदाबादमें गुजरात विद्यापीठ[]स्थापित किया गया है, उसके काममें यह रुपया लगाया जायेगा। मैं इसके द्वारा भड़ौंचके निवासियोंको एक पदार्थ-पाठ देना चाहता हूँ।

यदि इस ढंगसे असहयोग किया गया तो आप एक वर्षके भीतर स्वराज्य पा जायेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १०-११-१९२०
 

२३४. भाषण : अंकलेश्वरमें[]

२ नवम्बर, १९२०

जिस पूज्य पुरुषका नाम आपने अपनी पाठशालाके साथ जोड़ा है, उसके नामकी शोभा बढ़ाइये। लोकमान्यको स्वराज्य जितना प्रिय था, उतना और किसीको नहीं होगा। इस राष्ट्रीय पाठशालाके साथ स्व॰ लोकमान्यका नाम स्वराज्यको निकट लानेके उद्देश्यसे ही जोड़ना उचित है। माँ-बाप, विद्यार्थियों और शिक्षकोंसे मैं जो सरकारी पाठशालाएँ छोड़नेको कहता हूँ, वह इसलिए नहीं कि उनकी शिक्षा खराब है। जो भावना मैं आपमें पैदा करना चाहता हूँ, उसके साथ शिक्षाके प्रश्नका थोड़ा ही सम्बन्ध है।

  1. गुजरात विद्यापीठका महाविद्यालय १५-११-१९२० को खोला गया था।
  2. लोकमान्य राष्ट्रीय पाठशालाका उद्घाटन करते हुए।