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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सरकारी पाठशालाओंमें जो शिक्षा दी जाती है, उसमें सुधारकी आवश्यकता तो जरूर है, परन्तु जबतक ऐसा न हो तबतक जो करनेका काम है, उसे नहीं रोका जा सकता।

पचास वर्षसे हम सरकारी स्कूलोंको पोसते आ रहे हैं और उनसे कुछ लाभ भी उठाया है। लेकिन इस समय वे सारे स्कूल हमारे लिए हराम ह। अलबत्ता, इसका कारण अलग है। वर्तमान स्कूलोंपर जो झण्डा फहराता है, वह राक्षसी राज्यका है। इन स्कूलोंपर जिस हुकूमतका झण्डा लहरा रहा है, उसने सात करोड़ मुसलमानोंके दिल जख्मी किये हैं और पंजाबमें किये गये काले कारनामे पूरे भारतपर अत्याचार हैं। सारे धर्मशास्त्र एक स्वरसे कहते हैं कि अधर्मी राजाका आश्रय पाप है, वह अधर्मको भेंटनेके बराबर है, अधर्म में भाग लेनेके समान है। इस हुकूमतके स्कूलोंमें जानेसे आपको द्रव्य मिलता हो, वहाँ आपको 'कुरान शरीफ', 'जेंद अवेस्ता' या 'गीता' पढ़ाई जाये, तो भी आप उससे भाग जाइये। वे 'कुरान' या 'गीता' भी पढ़ायें तो भी उनका उद्देश्य बुरा है। इसलिए जिस स्कूलपर राक्षसी ध्वजा फहरा रही हो, उसमें अपने बच्चोंको शिक्षा देकर हम उन्हें गुलाम नहीं बनाना चाहते। जो यह चीज समझ गये हों, वे एक दिनके लिए भी अपने बच्चोंको सरकारी स्कूलकालेजोंमें नहीं रहने देंगे। पहले बच्चोंको वहाँसे हटा लेंगे और बादमें दूसरी शिक्षा देनेका प्रबन्ध करेंगे। हमारा मकान जलने लगे तो दूसरा अच्छा मकान मिलनेतक हम उस जलते हुए मकानमें हरगिज नहीं रहेंगे। हम तुरन्त ही नीचे छलांग मारेंगे——फिर भले ही नीचे खाई हो। यह भाव यदि हममें पैदा न हो, तो हम शिक्षा के आन्दोलनमें असफल होंगे, क्योंकि सरकारी मनुष्य——जासूस——तो हमें सदा ललचाते रहेंगे और कहेंगे कि देखो, हमारी पाठशालाओंकी शिक्षा कितनी बढ़िया है, हमारे मकान कितने बढ़िया हैं, हमारे यहाँ मुफ्त शिक्षा दी जाती है। इतना सब होनेपर भी उनकी शिक्षा हमारे लिए त्याज्य है——हराम है, ऐसी भावना जबतक लोगोंमें पैदा न हो, तबतक आन्दोलन आगे नहीं बढ़ेगा।

माता-पिताओंसे मेरी प्रार्थना है कि आप अपने बालकोंको गुलामीमें न रखें। आपका पहला काम यह है कि बच्चोंको सरकारी स्कूल-कालेजोंसे हटा लें। हटा लेनेके बाद हम बच्चोंको गलियोंमें नहीं भटकने देंगे। इसलिए आपका दूसरा काम यह है कि राष्ट्रीय शिक्षा देनेके लिए अपना सर्वस्व लगाकर प्रबन्ध करें। यदि इतनी शक्ति हममें न हो, तो हम स्वराज्य नहीं ले सकेंगे। स्वराज्य अर्थात् अपना राज्य चलानेके लिए शक्ति तो अवश्य चाहिए।

राष्ट्रीय शिक्षाकी सफलताके लिए दूसरी आवश्यकता है चरित्रवान् शिक्षकोंकी। यहाँके हाई स्कूलके मुख्य अध्यापक और दूसरे शिक्षकोंको, जिन्होंने धर्म और देशके लिए त्याग किया है, मैं बधाई देता हूँ और उनसे प्रार्थना करता हूँ कि जिस वृत्तिसे आपने स्वार्थत्याग किया है, उसी वृत्तिसे अब आगेका कार्य करना। कार्यमें तन्मय हो जायेंगे, तो रुपया सुलभ हो जायेगा। आपका व्यवस्थापक मण्डल आसानीसे रुपया जुटा सकेगा। साफ जमीनपर बैठकर पढ़नेपर भी राष्ट्रीय पाठशालाके लड़के दूसरे लड़कोंकी स्पर्द्धा