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भाषण : अंकलेश्वरमें

कर सकेंगे और शिक्षक चरित्रवान् होंगे तो सरकारकी बड़ी-बड़ी पाठशालाओंकी अपेक्षा राष्ट्रीय स्कूलोंके विद्यार्थी अधिक पौरुषवान् बनेंगे। इस समय पुरुष पुरुषत्व खो बैठे हैं, स्त्रियाँ स्त्रीत्व गँवा बैठी हैं। उनमें वीर सन्तान पैदा करनेकी शक्ति नहीं है। मैं उन्हें गुलाम पैदा करनेसे मना करता हूँ। वीर सन्तान पैदा हो तो जिन पाठशालाओंकी शिक्षा उन्हें गुलाम बना देती है, उसकी शिक्षा लेनेसे वे इनकार कर देंगे। माता-पिता लड़कोंको गुलामीकी शिक्षा लेने न भेजें तो दूसरी पाठशालाओंके मुकाबलेमें राष्ट्रीय स्कूल अवश्य सुशोभित होंगे।

व्यवस्थापक कमेटीको मेरा सुझाव है कि आप लोग बिलकुल अधीर न हों। आप माता-पिताओंसे विनय करें, परन्तु कटु वचन न कहें। उन्हें समझाना कठिन कार्य है। यह नहीं मान लेना चाहिए कि हर एककी आँखें खुल जायेंगी और वह हमारी तरह देखने लगेगा। यह नई हवा अभी थोड़े ही दिनसे बहने लगी है। इसलिए हम धीरज न रख सकें, तो कुछ भी काम नहीं कर सकेंगे।

मैंने सुना है कि अंकलेश्वरके धनाढ्य पारसी असहयोगके विरुद्ध हैं। भारत जितना हिन्दुओं और मुसलमानोंका देश है, उतना ही पारसियोंका भी है। क्या दादाभाई नौरोजी हिन्दुस्तानी नहीं थे? क्या सर फीरोजशाह भारतीय नहीं थे? पारसियोंको भी देशके लिए उतना ही दर्द होना चाहिए जितना औरोंको है। हम पारसियोंको समझाकर, पैरों पड़कर, उनसे द्रव्य माँगेंगे, वे अपने बच्चोंको हमारी पाठशालाओंमें भेजेंगे तो उन्हें नमस्कार करेंगे, नहीं भेजेंगे तो भी नमस्कार करेंगे। ऐसा करके हम उन्हें दिखायेंगे कि भारतमें जो जबरदस्त आन्दोलन चल रहा है, उसमें उन्हें भी अपना हिस्सा अदा करना चाहिए। आप पारसी भाइयोंको प्रेमसे वशमें करें। उनसे कहना कि आपको अपना फर्ज समझाना हमारा धर्म है।

राष्ट्रीय पाठशालाको सफलतापूर्वक चलानेकी सबसे बढ़िया कुंजी यह है कि बिलकुल आडम्बर न किया जाये, विज्ञापनबाजी बिलकुल न की जाये। इससे पीछे नहीं हटना होगा। ईंटोंकी सुन्दर चिनाई करनी हो तो जल्दबाजीसे चलेगा। विनाशके काममें उतावली हो सकती है। फसल काटनेका काम हँसिया लेकर एक दिनमें किया जा सकता है, परन्तु बोनेका काम इस प्रकार जल्दबाजीमें नहीं हो सकता। स्कूलोंको खाली करानेका काम तो एक ही दिनमें किया जा सकता है, परन्तु जहाँ नई चीज बनानी है, वहाँ बहुत धीरजकी जरूरत है। आपको अच्छे मास्टर न मिलते हों तो इससे घबराकर आप चरित्रहीन शिक्षक न ले लें। यदि हम सत्यको न छोड़ें, जल्दबाजी न करें तो आज इस पाठशालामें जैसे १२० विद्यार्थी भरती हुए हैं, वैसे आपको १,२०० विद्यार्थी मिल सकेंगे। सरकारी पाठशालाओंके तमाम विद्यार्थी आपको मिल जायें, तो भी काफी नहीं। वहाँ सभी बालक तो जाते नहीं। गाँवमें एक भी बालक या बालिका ऐसी न रहनी चाहिए, जिसे हम उत्तम चरित्रका निर्माण करनेवाली शिक्षा न दे सकें।

जिस महापुरुषके नामपर आपने यह कार्य आरम्भ किया है, खिलाफत और पंजाबके सम्बन्धमें न्याय प्राप्त करने, स्वराज्य प्राप्त करने आदि शुभकार्योके लिए जिसकी