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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४७०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्थापना हो रही है, जिसकी स्मृतिमें यह पाठशाला स्थापित हो रही है उसे आप सुशोभित करें। परमेश्वर माता-पिताओंको, विद्यार्थियोंको और शिक्षकोंको सद्बुद्धि दे।

[गुजराती से]
नवजीवन, १०-११-१९२०
 

२३५. अलीगढ़के छात्रोंके माता-पिताओंके नाम

सज्जनो,

मैं जानता हूँ कि मेरे कुछ कामोंसे इस समय मेरे तमाम अच्छेसे-अच्छे मित्र हैरान हो उठे हैं; देशके नौजवानोंको दी गई मेरी सलाह उन कामोंमें से एक है। मुझे मित्रोंकी इस हैरानीपर आश्चर्य नहीं होता। हम आज जिस शासन-प्रणालीका भार ढो रहे हैं उसके सम्बन्धमें मेरा रुख बिलकुल बदल गया है। हमारे धर्मग्रंथोंमें रावणके आसुरी शासनका वर्णन है। मेरे लेखे वर्तमान शासन-प्रणाली उसी प्रकारके आसुरी तत्त्वोंसे परिपूर्ण है। मेरी निश्चित मान्यता है कि अगर इस प्रणालीमें आमूल परिवर्तन नहीं किया जाता और शासक लोग निश्चित रूपसे पश्चात्ताप नहीं करते तो इस शासनको समाप्त कर देना चाहिए। किन्तु, इस सम्बन्धमें मेरे मित्रोंकी मान्यता इतनी दृढ़ नहीं है।

अलीगढ़में पढ़नेवाले अपने बच्चोंके लिए आप चिन्तित हैं। आपकी चिन्ता मेरी भी चिन्ता है। आप विश्वास कीजिए कि मैं आपकी भावनाओंको चोट नहीं पहुँचाना चाहता। मैं स्वयं चार लड़कोंका पिता हूँ और उनका लालन-पालन, अपनी समझसे मैंने अच्छेसे अच्छेसे-अच्छे ढंग से किया है। मैं सदा अपने माता-पिताके प्रति आज्ञाकारी रहा हूँ और उसी तरह अपने शिक्षकोंके प्रति भी। मैं माता-पिताके प्रति पुत्रके कर्त्तव्यका मूल्य भी जानता हूँ। लेकिन ईश्वरके प्रति अपने कर्त्तव्यको में सर्वोपरि मानता हूँ। और मेरे विचारसे, इस देशके युवकों और युवतियोंके सामने वह घड़ी आ पहुँची है जब उन्हें चुनाव करना है कि वे ईश्वरके प्रति अपना कर्त्तव्य निभायें या अन्य लोगोंके प्रति। मेरा दावा है कि अपने देशके युवा-समुदायको मैं काफी निकटसे जानता हूँ। मैं जानता हूँ कि हमारे देशमें अपने उच्चतर शिक्षणका स्वरूप तय करना-कराना ज्यादातर तो नौजवानोंके ही हाथमें है। मैं बहुतसे ऐसे उदाहरण भी जानता हूँ जिनमें माता-पिताओंको उच्चतर शिक्षाके प्रति अपने बच्चोंका आकर्षण एक झूठा मोह-जैसा लगता है, लेकिन तब भी वे उन्हें उस ओरसे विमुख नहीं कर पाते। इसलिए मेरी यह निश्चित मान्यता है कि अगर मैं नौजवानोंसे, अपने माता-पिताकी इच्छाके विरुद्ध भी, अपने स्कूल और कालेज छोड़ देने को कहता हूँ तो उससे माता-पिताकी भावनाको कोई चोट नहीं पहुँचती। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिन सैकड़ों बच्चोंने अपने स्कूल या कालेज छोड़ दिये हैं, उनके माता-पिताओंमें से केवल एकने आपत्ति करते