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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोकमत जाननेका एक तरीका-भर है कि हममें स्वशासन और अपने धर्मों तथा सम्मानकी रक्षा करनेकी क्षमता है या नहीं

भारतीय युवा समुदायका हितचिन्तक,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजी से]
यंग इंडिया, ३-११-१९२०
 

२३६. टिप्पणियाँ

लाहौरकी सार्वजनिक सभामें कही गई इस बातका सरकार द्वारा खण्डन किया गया है कि मौलाना जफर अली खाँ एक तंग, अँधेरी कोठरीमें कैद हैं और अगर वे अभी एक विचाराधीन कैदी ही हैं, तो भी उन्हें जेलमें दिया जानेवाला भोजन ही मिल रहा है। यह उनके पुत्र द्वारा दी गई खबर थी। सम्बन्धित सभामें बोलनेवाला कौन था, इसका सरकारने अपने खण्डनमें उल्लेख नहीं किया है। वक्ता में था और जिस बातका सरकारने खण्डन किया है, वह मैंने कही थी। तथापि में सतर्क था। मुझे खबर किससे मिली है, मैंने यह बता दिया था और यह भी कहा था कि अगर यह बात सच है तो यह बरताव गैर-कानूनी और अमानवीय है। मुझे इस बातकी खुशी है कि सरकारने तीनों बातोंका खण्डन किया है। जो सरकार पहले ही इतनी बदनाम हो चुकी है, उसपर एकाध अतिशयोक्तिपूर्ण लांछन लगानेकी मेरी इच्छा नहीं हो सकती। मैं जानता हूँ कि एक भी गलत बात कहनेसे भारतका अहित ही हो सकता है। तथापि सरकारके तमाम खण्डनोंको अगर में सन्देहकी दृष्टि से देखूँ, तो मुझे क्षमा किया जाये। पंजाबके काले दिनोंमें इस तरह के बहुत खण्डन होते रहे हैं और इन खण्डनों में से ज्यादातर सफेद झूठ थे। इसलिए मैं पाठकोंसे प्रार्थना करता हूँ कि जबतक मौलाना जफर अली खाँके पत्रका स्पष्टीकरण नहीं मिल जाता तबतक हम कोई भी राय न बनायें। उन्होंने बहुत सोच-समझकर मुझे यह खबर दी थी और उनके कथकी सत्यतामें अविश्वास करनेका न तब कोई कारण था, न अब है। मैंने उन्हें पत्र लिखा है।

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इस बीच, में चाहता हूँ कि पाठक मेरे साथ मौलाना जफर अली खाँको इस बातपर बधाई दें कि उन्हें पाँच सालका देश निकाला और एक हजार रुपये जुर्मानेकी सजा हुई है। स्मरण रखना चाहिए कि यह सजा उन्हें कतिपय विचार रखनेके कारण हुई है। में 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें इस सजाका विश्लेषण कर चुका हूँ।[१] इस तरह पंजाब में दमन शुरू हो गया है। राज्य विरोधी सभाओंका निषेध भी लागू कर दिया

  1. देखिए "पंजाबमें दमन", २९–९–१९२०।