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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४७३

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गया है । जिन्हें सख्त भाषण कहा जा रहा है, इसी अर्थमें सख्त हैं कि वे "जैसेको तैसा" कहते हैं। उनमें इस बातकी माँग भी की जाती है कि अगर सरकार पश्चात्ताप नहीं करती तो हमें पूर्ण स्वतन्त्रता चाहिए। अगर ऐसी मांग सख्त हो तो वे भाषण सख्त हैं।

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किन्तु इस दमनकी हमें चिन्ता नहीं करनी चाहिए, बल्कि इससे हमारा यह संकल्प और दृढ़ बनना चाहिए कि हम इस जुएको उतार फेंकेंगे जो हमें अपमानित करने और सदा गुलाम बनाये रखने के इरादे से हमपर रख दिया गया है। सफलताकी एक अनिवार्य शर्त यह है कि दमनके बावजूद हम अपनी बुद्धि स्थिर रख सकें। लगातार छिपकर या खुल्लमखुल्ला हमें प्रत्याक्रमण नहीं करना चाहिए। विनम्रतापूर्वक हमें दमनको बरदाश्त करना चाहिए और उसका उपयोग सरकारके साथ अपने सम्बन्धोंको मुल्तवी या खत्म करनेके संकल्पको दृढ़ बनाने की दिशा में करना चाहिए। किसी निरपराध व्यक्तिको सजा दिये जानेपर हम हड़ताल करते हैं। यह तो कमजोरीकी निशानी है, इसका तो यह अर्थ होता है कि हम स्वयं जेल नहीं जाना चाहते। किन्तु मेरी समझ- में तो सम्राट्के जेलखानोंके दरवाजे पार किये बिना हम स्वराज्य के आँगन में नहीं पहुँच सकते। इसलिए जब कभी किसी निरपराध व्यक्तिको अपनी राय जाहिर करनेके अपराध में सजा दी जाती है, तो हमें उनके उस कष्टके अवसरपर उत्सव मनाना चाहिए। राजनीतिक अपराधियोंकी रिहाईका सबसे अच्छा उपाय जेलोंको भर देना है और जेलोंको भरनेका सबसे अच्छा उपाय निरन्तर असहयोग करना, सम्भव हो तो अंग्रेजोंसे सम्बन्ध रखकर और यदि आवश्यक हो तो उनसे सारे सम्बन्ध तोड़कर, पूर्ण स्वराज्यकी निस्संकोच स्पष्ट शब्दों में माँग करना है।

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यदि अभिव्यक्तिकी स्वतन्त्रताको दबाने में पंजाब सरकार सक्रिय हो उठी है, तो संयुक्त प्रान्तकी सरकार भी इस बात में उससे पीछे नहीं है। मौलाना जफरुल्मुल्कको दो वर्षका कारावास और ७५० रुपये जुरमाना अथवा जुरमाना न देनेपर ९ महीनेकी अतिरिक्त सजा सुनाई गई है। और भी लोगोंके गिरफ्तार होनेकी सम्भावना है। इतना ही नहीं, यह भी सुझाव दिया गया है कि मेरी गतिविधियाँ अबाध नहीं रखी जानी चाहिए। मेरी गतिविधिका परिणाम थोड़े ही समय में स्वराज्यकी प्राप्ति है। और अगर इस दिनको दूर रखना है तो मेरी बातें सुनने और तदनुसार सोचनेसे जनताको वंचित रखा जाना चाहिए। यदि सरकारकी ऐसी ही राय हो कि मेरी गति-विधियाँ हानिकारक हैं तो उसे मेरी स्वतन्त्रताका अपहरण करनेका अधिकार है। सच कहूँ तो मेरे सहयोगियोंको सजा देनेके बजाय मुझसे निपट लेना ज्यादा ठीक है। मेरी और मेरे सहयोगियोंकी गतिविधियों में अन्तर करना ठीक नहीं है। हम सभी पूर्ण रूप से अहिंसक हैं। हम केवल कुछ ऐसे विचारोंके प्रचारकी चिन्ता कर रहे हैं, जिनका यदि पालन किया जाये, तो उसका परिणाम हिंसा तो हो ही नहीं सकता। जो सरकार