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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शान्तिपूर्ण प्रचारका दमन करनेकी कोशिश करती है, वह तो केवल एक अत्याचारी सरकार ही हो सकती है। इसलिए जबतक यह सरकार खिलाफत और पंजाबको न्याय देनेसे इनकार करती चली जाती है, तबतक उसे दमनका सहारा लेना ही पड़ेगा। दमन ही उस अत्याचारी सरकारका एकमात्र साथी है जो अपने उद्देश्यकी सफलतामें बाधाका अनुभव करती है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-११-१९२०

 

२३७. दलित जातियाँ[१]

आधिकारिक उत्तर देनेके खयालसे इस पत्रको सीनेटके सामने पेश किया गया। सीनेटने इस आशयका एक प्रस्ताव पास किया है कि सीनेटके संविधानके अनुसार ऐसी कोई भी संस्था, जिसमें दलित वर्गोंके लोगोंके लिए स्थान न हो, सीनेटसे सम्बद्ध नहीं हो सकती। स्वयं मुझे तो संविधानके मन्शाके बारेमें किसी प्रकारका सन्देह था ही नहीं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-११-१९२०

 

२३८. लखनऊके भाषण

अली-बन्धुओंके मेरे साथ लखनऊ पहुँचनेपर अभी जो सभा हुई थी बहुत लोगोंका ध्यान उस ओर आकृष्ट हुआ है, क्योंकि उसके परिणामस्वरूप श्री डगलसने, जो एक भारतीय ईसाई बैरिस्टर हैं, असहयोग आन्दोलनसे अपना सम्बन्ध तोड़ लिया है। श्री डगलसके इस निर्णयका कारण है उस अवसरपर मौलाना अब्दुल बारी द्वारा दिया गया भाषण। श्री डगलसका आरोप है कि मौलाना साहबने ईसाइयोंको काफिर कहा और श्री विलोबीकी हत्याकी लगभग उपेक्षा ही कर दी।

मैं उस सभामें मौजूद था और मौलाना साहबका एक-एक शब्द ध्यान से सुन रहा था। इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि उस भाषणमें श्री डगलसके आन्दोलनसे अलग होनेकी कोई गुंजाइश ही नहीं थी। यह कहना भी सही नहीं है कि मौलाना साहबने हत्यारेको क्षम्य कहा या विलोबीको काफिर कहनेमें उनका मंशा ईसाइयतका अपमान करना था। श्री डगलसके पास इस सम्बन्धविच्छेदका कोई भी औचित्य नहीं

  1. यह टिप्पणी श्री सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूजके पत्रके उत्तरमें लिखी गयी थी। श्री एन्ड्र्यूजके गांधीजी एक लेख (देखिए "दलित जातियाँ", २७-१०-१९२०) का उल्लेख करते हुए पूछा था: "क्या सभी राष्ट्रीय स्कूलों और कालेजोंमें दलित जातियोंके लोग प्रवेश पा सकेंगे?"